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________________ कपाटा नीचे प्रमाणे . केटलीक बालिका उत्सुकपणाथी पोताना गालो पर काजलना अंको करती/81 हवी, अने आंखमां कस्तुरी नाखती हवी, गलामा नूपुर पहेरती हवी, तथा पगमां कंगो पहे. ॥६६॥ दरती हवी. कोइए तो केस पर हार पहेयों, तथा घमघमती घुघरीवालो कंदोरो गलामां पर्यो, तथा गोशीर्ष चंदनथी पगने रंग्या, अने अलताथी शरीरने रंग्यु. कोश्क बालिका तो अर्ध स्नान करेली, अने तेथी गलतुं ले पाणी एवी तथा बुटा डे केश जेणीना एवी पहेला त्रास, तथा जाएया बाद कोने हास्य न करावती हवी? कोश्क मुग्ध बालानां वस्त्रो ढीलां थ खसी जवाथी तेणी हाथमां केवल नामी पकमीनेज रहेली हती, तोपण सघला लोको प्रजुने जोवामां लागते है। बते तेणीने जरा पण शरम लागी नहीं. कोश्क तरुण स्त्री तो उत्सुकपणाथी पोताना रडता बालकने तजीने, तथा हाथमां तेने बदले वीलामाने लश्ने, केम पर बेसामीने रस्ते जती थकी कोने हास्य नहीं करावती हवी? कोश्क स्त्री तो कहेवा लागी के प्रचुर्नु अहो महा रूप ! अहो तेज ! श्रहो शरीरनुं सौजाग्य केवु ने!!! हुं तो विधात्राना हाथनी था चतुराश् जोइ तेनां दुःख ललं. है। विकखर श्रयेल ने कपोल जेणीना एवी कोश्क स्त्री तो प्रजुनु मुख जोवामां अत्यंत लोलुप थवाथी । पोतानां पमी गयेला सोनानां श्रानूषणोने जाणती पण न हती. कोश्क चंचल नेत्रवाली स्त्री तो पोताना हस्तकमलथी पवित्र मोती उमामवा लागी अने केटलीक तो मंगलोने कोमल स्वरथी गावा लागी, तथा केटलीक तो हर्षथी संपूर्ण थश्ने नाचवा लागी. 4 एवी रीते नगरनी स्त्रीउथी जोवातो ने विजवनो प्रकर्ष जेमनो एवा प्रजुनी अगामी पहेला है। है तो रत्नमय अष्ट मंगलो चालतां हवा. ते नीचे प्रमाणे, खस्तिक, श्रीवत्स, नंदावर्त्त, वर्धमानक, 27 नासन, कलश, मत्स्ययुग, श्रने दर्पण; तेनी पड़ी पूर्ण कलश, कारी, चामर, त्यार बाद मोटी पताका, 31 उत्र, मणि अने स्वर्णमय पादपीठवावु सिंहासन, त्यार बाद स्वार विनाना एकसो आठ उत्तम हाथी, तेटलाज घोमा, त्यार बाद तेटलाज घंटा अने पताकाए करीने मनोहर लागता अने शस्त्रया पूर्ण रथो, AMRESCRA R onal For Private Personal Use Only
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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