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________________ कल्प० २५॥ PRORSCOORDCROSSESCREGALISALCULACESS उतर्यो भने नीचे उतरीने मरकत मणि तथा रिष्ट श्रने अंजन नामनां रत्नो वडे निपुण एवा कारीगरे रचेलीयने देदीप्यमान एवा चंडकांत विगेरेमणि अने कर्केतन विगेरे रत्नोथी मंमित एवी ते पाहुकाने उतारी नाखी श्रने उतारीने ते इंघ एक पट उत्तरासंग करे . ते कर्या पली अंजलि करवाने बंने हाथ योजे , तेवो थश्ते प्रजुनी सन्मुख साताठ पगला सामो जाय , पनी डाबा ढींचणने 5 उपाडे एटले पृथ्वीने लग्न (श्रमकेलो) न थाय तेम स्थापे अने दक्षिण जानुने पृथ्वी उपर मूके, पडी त्रण वार पृथ्वी उपर मस्तक नमावे, नमावीने जरा उत्तरार्ध अंगथी उन्नो थाय, तेम करी कंकण अने बेरखाथी स्तंजन करेली नुजाउने वाले, ते वालीने हाथना संपुटमां रचेली दश नख सहित दक्षिणावर्त्तप-2 णे मस्तक पर जमावाती एवी अंजलि मस्तक पर करीने या प्रमाणे बोल्यो. ते शुं बोल्यो.ते कहे ,मूलमां 'ण'ए श्रदर सर्व ठेकाणे वाक्यालंकारने माटे .त्रण जुवनने पूजवा योग्य एवा अहंत प्रजुने नमस्कार हो.कर्मरूप वैरीने हणवाथी अरिहंताणं एवो पण पाउने अथवा अरुहंताणं एवो पाउ लश्ए तो रागळे षरूपकर्मवीजनो अनाव करनार एवो अर्थ थाय एटले जवदेत्रमा ते बीज उगवानोज अनाव थाय ने. वली ते प्रज्नु जगवंत एटले ज्ञानादिवाला तेमज ते आदिकर एटले पोतपोताना तीर्थनी अपेक्षाए धर्मना आदिकर्ता जे. वनी जे तीर्थ एटले संघ अथवा प्रथम गणधर तेने स्थापन करनारा बे. जे स्वयं-18 बुद्ध एटले परोपदेशथी बोध पामेला नथी, पोतानी मेले बोध पामेला जे.जे अनंत गुणोना निधानरूप होवाथीपुरुषोमां उत्तम .जे कर्मरूपी वैरीउमां निर्दय शूरवीर होवाथी पुरुषसिंह बे. वली जे पुरुषोमा । प्रधान एवा पुमरीक-श्वेत कमलनी जेवा जे. जेम पुंडरीक-कमल कादवमां थाय अने जल वडे वधे , पबीते जल तथा कादवने बोडी उपर रहे. एवीरीते जगवंत पण कर्मरूपी कादवमा उत्पन्न थया अने नोगरूपी जलथी वृद्धि पाम्या बे. ते कर्म अने जोगनो त्याग करी पड़ी जुदा रहे बे. वली ते उत्तम पुरुषोमां गंधहस्ती एटले मदगंधी हस्ती जेवा. जेम गंधहस्तीना है गंधथी बीजा हाथी पलायन करी जाय बे तेम जगवंतना प्रनावथी बीजा फुकाल विगेरे उपवो GAOCALCROCOCCACANCCASCALCANOAACANCHCANCALCASCALC ॥१५॥ Jain Educat For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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