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कल्प०
॥५॥
शिव विगेरे दोष न होय तोपण संयमनो निर्वाह करवाने क्षेत्रना गुणोनी अन्वेषणा करवी. क्षेत्र जघन्य, उत्कृष्ट अने मध्यम एवा त्रण प्रकारनुं वे. तेमां जे चार गुणोथी युक्त होय ते जघन्य क| देवाय ते चार गुणो या प्रमाणे बे-ज्यां विहारभूमि एटले १ जिनप्रासाद होय, २ ज्यां स्थंमिल (वल्ले जवानुं) शुद्ध, निर्जीव छाने कोइ जोवे नहीं तेवुं होय, ३ ज्यां स्वाध्याय - सझाय करवानी भूमि सुलन एटले अस्वाध्यायश्री रहित होय, अने ४ ज्यां साधुर्जने थाहार मलवो सुलन होय. जे तेर गुपोथी युक्त होय ते उत्कृष्ट कहेवाय. ते गुणो या प्रमाणे बे- १ ज्यां घणो कादव न होय, २ ज्यां घणा संमूर्तिम जीवो उद्भव थता न होय, ३ ज्यां वल्लानुं स्थान निर्दोष होय, ४ ज्यां रहेवानो उपाश्रय स्त्रीना संसर्ग विगेरेथी रहित होय, ५ ज्यां गोरस घणो मले तेम होय, ६ ज्यां लोकसमूह महान् अने नजिक होय, ज्यां वैद्यो नजिक होय, ज्यां श्रौषधो सुलन होय, ए ज्यां गृहस्थोनां घर कुटुंबवाल ने धन धान्यादिकथी पूर्ण होय, १० ज्यां राजा जडिक होय, ११ ज्यां ब्राह्मणादिकथी मुनि
नुं अपमान न थतुं होय, १२ ज्यां निका स्टेलाइथी मलती होय, अने १३ ज्यां स्वाध्याय शुद्ध रीते यतो होय. ते तेर गुणोथी युक्त उत्कृष्ट क्षेत्र ठे. पूर्वे कडेला चार गुणोथी अधिक, पांचथी बधा गुणोए युक्त अने तेरमा गुणथी ऊएं एटले वारमा गुण पर्यंत एवं मध्यम क्षेत्र बे. तेथी प्रथम उत्कृष्टा क्षेत्रमां, त्यां जो तेवुं न होय तो मध्यम क्षेत्रमां त्यां पण तेवुंन होय तो जघन्य क्षेत्रमां श्रने हालमां तो गुरुए था|ज्ञा करेला क्षेत्रमां साधुर्जए पर्युषणा कल्प करवो. उपर दर्शावेलो या दश प्रकारनो कल्प जो दोषना - जावे कर्यो होय तो त्रीजा वैद्यना औषधनी जेम हितकारक थाय छे. ते विषे या प्रमाणे कथा बे- कोइ राजाए पोताना पुत्रने जविष्यमां रोग न थाय तेवी चिकित्सा करवाने त्रण वैद्योने बोलाव्या. तेमां प्रथम वैद्य बोल्यो- मारुं औषध जो रोग होय तो तेने दणे ने जो रोग न होय तो दोष प्र कट करे बे. राजाए कयुं, सुतेला सर्पने उगडवा जेवा यावा औषधथी सर्यु. वीजो वैद्य बोल्योमारुं औषध जो रोग होय तो तेने हणे बे घने रोग न होय तो गुण के दोष करतुं नथी. राजाए
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सुबो
॥५॥
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