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हवे देवोमांथी जे अगामी होय बे, ते पठाड़ी रहेलाने धन्य माने बे, तथा पछाडी रहेलो श्रगामी रहेलाने धन्य माने वे, तथा केटलाक श्रगामीना जागमां गयेला देवो प्रजुने जोवा माटे पोतानी पीठमां पण नेत्रने छवा लाग्या. एवी रीते इंद्र मेरु पर्वतना शिखर पर जर, त्यां दक्षिण जागमां रहेला पांशुक वनमां पांसुकंबला नामनी शिला पर गयो. त्यां प्रजुने खोलामां लइ पूर्व सन्मुख ते बेवो; तथा ते वखते सघला देवो पण प्रजुना चरणनी समीप श्राव्या. दश वैमानिक, वीश जवनपतिर्ज, वत्रीश व्यंतरो, वे ज्योतिष्क एम मली चोसव इंद्रो त्यां श्राव्या. त्यां सोनाना, रूपाना, रत्नोना, सोनारूपाना, सोना अने रलोना, रूपा ने रलोना, सोना, रूपा अने रत्नना, तथा माटीना, एवा था जातिना प्रत्येकना एक हजार ने आठ एक योजनना मुखवाला कलशो ( पचीश योजन उंचा, वार यो जन पोहोला ने एक योजनना नालवाला सर्व देवोना एक करोड छाने साठ लाख कलश ) तथा एवी रीते शृंगार, दर्पण, रत्नकरंमक, सुप्रतिष्ठक एवा थाल, पुष्प, चंगेरिकादिक पूजानां उपकरणो, | प्रत्येक कलशनी पेठे एक हजार ने आठ प्रमाणे जाणवां, तथा मागध यादिक तीर्थनी माटी, गंगा|दिकनां जल, पद्मसरोवर यादिकनां पाणी तथा कमलो, कुल्ल हिमवंत, वर्षधर, वैताढ्य विजय तथा वदस्कार यादिक पर्वतो परश्री सर्वव, पुष्प, गंध विगेरे सर्व प्रकारनी औौषधीओने श्रच्युतेंद्र था| जियोगिक देवोनी मारफते मगावी लेतो हवो. ते वखते वक्षःस्थल पासे राखेल बे कीरसमुद्रना पाणीना घमा जेर्जए एवा देवो जाणे संसारनो समूह तरवा माटे घमाउनेज तेर्जए धारण कर्या | होय तेम शोजवा लाग्या; तथा जाणे जावरूप वृक्षने सिंचता होय अथवा पोतानो मेल जाणे धोइ नाखताज होय अथवा धर्मरूप प्रासाद उपर जाणे कलश स्थापन करता होय तेम ते देवो शोजता हवा.
हवे ते वखते इंद्रना संशयने जाणीने वीर प्रजुए जमणा अंगुठार्थी चारे बाजुएथी मेरु पर्वतने कंपाव्यो; ते वखते पृथ्वी भुजवा लागी, शिखरो परवा लाग्यां तथा समुद्रो कोजायमान थवा लाग्या तथा एवी रीते ब्रह्मांग फुटी जाय एवा शब्दो यते उते, क्रोध पामेल इंद्रे अवधिथी जाणी
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