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________________ कल्प० 11 43 11 Jain Education प्रभु पासे क्षमा मागी असंख्याता तीर्थंकरो मांहेथी आज दिन सुधी मने कोइए पगेयी स्पर्श कर्यो नयी, अने श्राजे था वीर प्रजुए कर्यो, एवा हर्षथी जाणे ते मेरु नाचतोज होय नहीं ! तेम देखावा | लाग्यो. वली तेणे विचार्य के या स्नात्रनीरना अनिषेकथी करतां सघलां करणारूपी में हारो पहेर्या, तथा जिनेश्वररूपी मुकुटने धारीने हुं सघला पर्वतोनो राजा थयो बुं. हवे त्यां पहेलां अच्युतेंद्र प्रजुने नवरावे, तथा एवी रीते अनुक्रमे बेक चंद्र सूर्यादिक सुधी सघलाई निषेक करे. अहीं कवि घटना करे वे के, स्नात्रमहोत्सव वखते चरम तीर्थंकरना मस्तक पर श्वेत बत्रनी पेठे श्राचरण करतुं मुखरूपी चंद्र प्रत्ये किरणोना समूहनी पेठे याचरण करतुं तथा कंठमां हारनी पेठे आचरण करतुं तथा समस्त शरीर पर चीन देशना कपमानी पेठे याचरण करतुं तथा इंद्रोना समूहोए उंचा करेला घमाना समूहना मध्य जागमांथी नीचे पडतुं एवं क्षीरसमुद्रनुं । पाणी तमारी लक्ष्मीने माटे था ! पठी इंद्रे पोते चार वृषनोनुं स्वरूप कर्यु, तथा तेनां श्राव शिंगडांमांथी पकता दूधयी पोते प्रभुनुं श्रनिषेचन करवा लाग्यो. ते देवो प्रजुने पाणीथी स्नान करावतां एवी रीते उलटा पोते नि - |र्मलपणाने प्राप्त थया ! ! पठी ते मंगलदीवो तथा यारात्रिक क्रिया करीने नृत्य, गीत, वाद्य | श्रादिकथी विविध प्रकारे महोत्सव करवा लाग्या. पढी इंद्रे गंधकाषाय्य नामना दिव्य वस्त्रयी प्र जुना अंगने लुंठीने अने चंदन श्रादिकधी लेपन करीने पुष्पोथी तेमनी पूजा करी. पठी इंडे प्रजुनी सन्मुख रत्नना पाटला पर रूपाना चोखाए करीने दर्पण, वर्धमान, कलश, मत्स्ययुगल, श्रीवत्स, स्वस्तिक, नंदावर्त्त तथा सिंहासन, ए श्रष्ट मंगलो आलेखीने प्रजुनी स्तुति करवा मांगी. पठी प्र जुने तेमनी माता पासे लावीने मूक्या, तथा पेलुं प्रतिबिंब घने यवस्थापिनी निद्राने पोतानी शक्तिथी इंद्रे पाठां ग्रहण करी लीधां. पोशीका प्रत्ये कुंमल ने रेशमी कपमांनी जोमी मूकी तथा चंद्रवामां श्रीदाम, For Private & Personal Use Only onal | सुवो० ॥ ५७ ॥ jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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