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एवी. वली ते लक्ष्मी देवी केवी , तो के देदीप्यमान एवा जे हाथो, तेणे करीने ग्रहण करेखां जे बे कमलो, तेउमांधी करतुं जे मकरंदरूप पाणी, तेणे करी युक्त एवी, अर्थात् लक्ष्मी देवीए पोताना है। बन्ने हाथमां बे कमलो ग्रहण करेला बे, अने तेमांथी मकरंदनां एटले पुष्पोमां थता रसनां बिंद नीचे पमतां जाय जे. वली ते लक्ष्मी देवी केवी , तो के केवल क्रीमाए करीने (पण पसीनो घर है। करवा माटे नहीं, कारण के देव संबंधी शरीरने पसीनो थतोज नथी) पवन लेवा माटे हलावेलो जे तालवृंद कहेतां पंखो, तेणे करीने शोनायुक्त थएली. (अहीं पण “ शोनायुक्त थएली” ए पद अध्याहार जाणवू.) वली ते लक्ष्मी देवी केवी , तो के सारी रीते बुटो करेलो, ( पण जटाजूटनी/8 पेठे परस्पर चोंटी गएला वालवालो नहीं,) तथा वली श्यामवर्ण एटले काली कांतिवालो तथा हैं घाटो, ( पण वच्चे आंतरावालो नहीं,) अने सूक्ष्म कहेतां कोमल,(पण मुकरना वालनी पेठे जाडा है।
केशवालो नहीं,) तथा अत्यंत लंबायमान थएलो, एवो डे वेणिदंड कहेतां चोटलो जेणीनो, एवी | प्रारीतनी लक्ष्मी देवीने त्रिशला क्षत्रियाणीए चोथा स्वप्नमां जो. | एवी रीते महोपाध्याय श्री कीर्ति विजय गणि, शिष्योपाध्याय श्री विनय विजय गणिए रचेली |कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टीकाना गुजराती नाषांतरमां बीजो क्षण समाप्त थयो. श्रीरस्तु ॥
॥ श्री जिनाय नमः॥
तृतीयं व्याख्यानं प्रारच्यते है हवे एवी रीतनुं लक्ष्मीनुं स्वप्न जोया बाद, त्रिशला कृत्रियाणीए ननस्तल कहेता आकाश
तलमाथी पमती एवी जे दाम कहेता पुष्पनी मालानु, पांचमुं स्वप्न जोयु. ते पुष्पोनी माला केवी बे, तो के सरस कहेतां मकरंदे करीने युक्त ने पुष्पो कहेतां फुलो जेमां, एवां जे कल्पवृदोनां पुष्पो, ते वडे करीने रमणीय कदेतां मनोहर थएली एवी. वली ते पुष्पोनी माला
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