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ने शरीर जेनुं एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के माला एटले पुष्पोनी माला तथा वर्णक एटले पीची अने शरीरने शोजावनारं कुंकुम आदिकनुं विलेपन, ते सघg शुचि कहेतां पवित्र ने जेने एवो.|| ! जावली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के परिहित कहेतां शरीर पर पहेरेला बे,मणि श्रने सुवर्णमय कहेतां
सोनामय,नूषण कहेतां अलंकारो जेणे एवोवली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के कल्पित कहेतां शरीर पर
योग्य स्थानके पहेरेला , हार कहेतांजेमां जुदी जुदी अढार सेरो होय ते, तथा अर्धहार कहेतां जेमां है जुदी जुदी नव सेरो होय ते, अने त्रिसरिक एटले जेमांत्रण सेरो जुदी जुदी होय एवो हार, तथा प्रलंवमान कहेतां लांबो लटकतो एवो, प्रालंब कहेतां कुंबनक (ॉमj) तथा कटिसूत्र कहेतां केमने स्थानके पहेरवानुं जे आजूषण ते, अर्थात् कंदोरो, एटलां उपर वर्ण वेलांजे श्रानूषणो, तेए करीने करेली में उत्तम प्रकारनी शोनाजेणे एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के पिनक कदेतां पहेरेलां , ग्रैवेयक
कहेतां कंठमां पहेरवानां कंगादिक जुदी जुदी जातिनां आनूषणो जेणे एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा । है केवो तो के अंगुलीयक कदेतां आंगलीमां पदेरवानां जुदा जुदा प्रकारनां आजूषणो के जे वेढ, वींटी विगेरेनांनामथी नियामांप्रसिकनेते तथा ललित कहेतां अत्यंत शाज तां केशोने शोजावनारां पुष्प श्रादिकनां थानूषणो, ते जेणे योग्य स्थानके पहेरेलां एवो. वली ते सिकार्थ राजा केवो तो के वर एटले अत्यंत उत्तम जातिनां एवां जे कटक कहेतांकडां तथात्रुटित कहेता है पोंची, बाजुबंध विगेरे जातिनां आजूषणोश्री स्तंचित थयेला बे हाथ जेना एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के अधिक एवं जे तेनुं पोतार्नु स्वानाविक रूप,तेणे करीने अत्यंत शोनायुक्त थएलो एवो. वली|४|| ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के कानमा पहेरवानांजे कुंमलो, तेणे करीने अत्यंत प्रकाशित थएवं ने श्रानन कहेतां मुख जेनुं एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के मस्तक पर पहेरवानो जे मुकुट, तेणे करीने से
अत्यंत तेजवायुं थएबुं ने मस्तक जेनुएवो.वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के हारे करीने श्राबादित एट-2 शाले श्राबादन युक्त करेवू, अने तेथी करीने जोनार माणसोने प्रमोद कहेतां अतिशय दर्षने आपनाएं |
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