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________________ सुबोग कल्प द हृदय कहेतां वक्षःस्थल जेनुएवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो ने तो के मुखिका कहेता वींटी श्रादि कथी पिंगल कहेता पीला रंगवाली थएली ने हाथनी आंगली जेनी एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो है ॥४१॥ तो के प्रलंब कहेतां लांबो, अने तेथी करीनेज नीचे लटकतो एवो जे छुपट्टो, तेणे करीने उत्तम रीते करेमुंडे उत्तरासंग जेणे एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के नाना प्रकारनां एटले जुदी जुदी जातिनांजे मणि अने कनक कहेतां जे सुवर्णो, अने रत्नो,तेणे करीने दीप्तिमंत कहेतां कांतिवालां, अने तेथी करी-14 हैनेज महार्घ्य कहेतां जेने खरीद करतां अने बनावतां पण घणुं मूल्य पडे एवां,तथा निपुण एटले शिल्प विद्यामां अत्यंत प्रवीण थएलो एवो जे शिल्पी कहेतां कारिगर, तेणे उपचित कहेतां घडीने बनावेलां, 2 तथा अत्यंत दीपतां, तथा घणीज चीवट राखीने वनावेलां,तथा कोजाणी न शके तथा उखमी पण नजाय एवी रीते जोडेला सांधा जेनी अंदर एवां,श्रने तेथी करीनेज विशिष्ट कहेतां बीजां श्रानू-8 हूँषणोथी अत्यंत रमणीय लागे एवां, तथा मनने पण हरी लीए एवां, धारण करेल ने वीरवलय कहेतां । वीरपणानो जे पोतानो अहंकार तेने सूचवनारांवलयो कहेतां कमां जेणे एवो; अर्थात् जे कोश पोताने , वीर तरिके मानतो होय, ते मने जीतीने या कडां उतरावे, एवी बुद्धिथी धारण करेल ने वीरवलय जेणे एवो सिद्धार्थ राजा. हवे कवि कहे के वधारे तेनुं शुं वर्णन करवू ? ते राजा तो कल्पवृदनी पेठे वि-3 नूषित थएलोहतो; एटले कल्पवृक्ष जेम पत्र कहेतां पांदमां श्रादिकथी अलंकृत होय, अने पुष्प एटले है है फुल आदिकधी जेम नूषित होय, तेमा सिद्धार्थ राजा पण मुकुट आदिकथी अलंकृत हतो, तथा वस्त्र श्रादिकथी विनूषित थयो हतो. वली ते राजा केवो तो के कोरिंट नामनां वृदनां जे पुष्पो, तेनी बना-2 वेलीजे मालार्ड, तेए करीने सहित एवं, अने तेना पर धारण करातुं जे उत्र, तथा श्वेत वर्णवाला अने । | मनोहर एवां, अने बन्ने बाजुए वींकाता एवां जे चामरो, तेए करीने नूषित थएलो एवो. वली ते राजा || ॥४१ है केवो तो के मंगलचूत कहेतां कल्याणकारी एवो जे"जय जय” नो शब्द ते कराइरहेलो , थालोकमाINत्र कहेता जेना जोवामात्रथी एवो; अर्थात जेने जोतां थकाज लोको जय जय शब्द करी रह्या डे ORDCORROCRACLASTROCEDARSAMADRASRDCOREGROGAMCX ॥ Jain Educaton International For Private & Personal Use Only wanyong
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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