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________________ कल्प अगीयारसने दिवसे प्रथम प्रहरने विषे विशाला नामनी पालखीमां बेसीने, देव, मनुष्य अने असु. सुबोग रोनी सन्ना जेनी श्रागल चाली रही डे एवा प्रजु इत्यादि सर्व पूर्वनी पेठे (वीर प्रजुनी पेठे)* कहे, परंतु एवं विशेष ले के वाणारसी नगरीना मध्य नागथी नीकल्या, अने नीकलीने ज्यां है आश्रमपद नामर्नु उद्यान डे अने ज्यां अशोक नामनुं वृद डे त्यां श्राव्या श्रने श्रावीने अशोक वृदनी नीचे पालखीने स्थापन करावी अने स्थापन करावीने पालखीथी नीचे उतर्या अने नीचे उतरीने पोतानी मेलेज श्रानरण माला विगेरे अलंकारो उतारी नाख्या अने उतारी नाखीने ४ दीपोतानी मेलेज पंचमुष्टि लोच को अने लोच करीने जल रहित बहमनो तप करीने विशाखा नक्षत्रमा चंयोग प्राप्त थये ते एक देवष्य वस्त्र लश्ने त्रणसो पुरुषोनी साथे मुंग थश्ने घरथी नीकली साधुपणाने प्राप्त थया अर्थात् दीक्षा ग्रहण करी. ४। पुरुषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रजुए त्र्याशी दिवस सुधी निरंतर कायाने वोसरावीने अनेॐ शरीर उपरथी ममता तजी दश्ने जे को उपसर्गो उत्पन्न थया, ते जेवा के देव, मनुष्य अने तियचे करेला तेमज अनुकूल अथवा प्रतिकूल ते उत्पन्न थयेला उपसोंने रुमी रीते सहन कर्या, वेव्या, खम्या अने नोगव्या. तेमां देवे करेल उपसर्ग कमठ संबंधी जे. ते या प्रमाणे :ॐ प्रजु दीक्षा लश्ने विचरता थका एक दहामो तापसना श्राश्रममां एक कुवानी नजदीक एक वमना वृदनी नीचे रात्रिए प्रतिमाथी रह्या हता. ते वखते ते मेघमाली नामनो पुष्ट देव प्रजुने उपभव करवा आव्यो, अने क्रोधथी अंध थयेला तेणे पोते विकुर्वेलां वाघ, वींडी विगेरेनां रूपोथी प्रजुने नयरहित जोश्ने, ते आकाशमां घोर अंधकार सरखां वादलां विकुर्वीने कल्पांतकालना मेघनी पेठे मुसलधाराथी वरसवा लाग्यो, अने अति जयंकर एवी वीजली सघली दिशामा फेलावी तथा ब्रह्मांक पण फुटी जाय एवी गर्जना पण ते वखते करी. क्षणवारमा जल १ गुजराती मागसर वदि अगीयारसने दिवसे. Jain Education For Private Personal Use Only
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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