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________________ है महा कष्टनो अर्थी एवो तपस्वी थयो. ते कमठ तापस अहीं नगरीनी बहार आव्यो , तेने माटे लोको जाय . ते सांजली प्रनु पण परिवार सहित तेने जोवा माटे गया. त्यां काष्ठनी । अंदर बलता एवा एक मोटा सर्पने करुणाना समुछ एवा प्रजुए पोताना ज्ञानयी जाणीने कदेवा लाग्या के हे मूढ तपस्वी! दया विना फोकट या कष्ट तुं शामाटे करे ? केमके दयारूपी नदीना मोटा कांग पर नगेला तृणना अंकुरा सरखा सर्वे धोबे, माटे जो ते नदी सुकाइ जाय तो ते तृणांकुरो केटली वार सुधी टकी शके ? ते सांजलीने क्रोधायमान थयेलो कम तापस करवा लाग्यो के राजपुत्रो तो हाथी, घोमा थादिकनी क्रीमा करवाज जाणी शके, पण धर्मने तो अमे तपोधनज जाणी शकीए बीए.पली प्रजुए तो अग्निकुंममांयी बलतुं लाकडं काढीने अने कुहामाश्री तेना बे कटका करीने तेमांधी तापथी व्याकुल थयेला सर्पने बहार काढ्यो, अने ते सर्प प्रजुना सेवकना 3 मुखथी नवकार मंत्र तथा प्रत्याख्यान सांजलीने तुरतज मृत्यु पामी धरणे थयो. त्यारे लोकोए प्रजुने "ज्ञानी" एम कहीने स्तुति करी. पी प्रजु पोताने स्थान के गया, थने कमठ पण तप तपीने मेघमारोमा मेघमाली देव थयो. है। दक्ष (माह्या), दक्ष प्रतिज्ञावाला, रूपवाला, गुणवाला, सरल परिणामवाला अने विनयवाला एवा पुरुषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रनु त्रीश वर्ष सुधी गृहस्थावस्थामा रह्या. एवामां वली जीत-है। ४कल्पिक एवा लोकांतिक देवोए ते इष्ट एवी वाणी वडे यावत् था प्रमाणे कयुः-हे समृद्धिमन् ! तमे जयवंता वर्तो, हे कल्याणवन् ! तमे जयवंता वर्तो. यावत् तेए जय जय शब्द कर्यो. । प्रथम पण पुरुषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रजुने मनुष्यने योग्य एवा गृहस्थधर्मथी अनुपम एवं है उपयोगरूप अवधिज्ञान हतुं, ते पूर्वे कहेझुं (वीर प्रजुनी पेठे) सर्व कहे, यावत् गोत्रीउने धन वहेंची आपीने या शीयालानो बीजो मास,त्रीजो पक्ष,ते पोष मासनो कृष्णपद,तेपोष मासना कृष्णपदनी Jan Educatan intamational For Private &Personal use Only wwwjainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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