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________________ Jain Education ते शाखार्ड कइ बे ? तो के शाखा या प्रमाणे कहेवाय ते. ते जेमके - काश्यपिका १, गौतमीका २१ वाशिष्टिका ३ ने सौराष्ट्रिका. ते या शाखा बे. ते कुलो कयां बे ? तो के कुलो या प्रमाणे कहेवाय बे. ते जेमके - पहेलुं ऋषिगुप्तिक, बीजुं कृषिदत्तिक ने श्रीजुं निजयंत ए त्रण कुल | माणव गणनां जाणवां व्याघ्रापत्य गोत्रवाला अने कौटिक तथा काकंदिक उपनामवाला स्थविर सुस्थित अने स्थविर सुप्रतिबुद्धथी कौटिक गए नामनो गण नीकल्यो बे. तेनी चार शाखाउँ अने चार कुलो या प्रमाणे कद्देवाय बे. ते शाखा कइ बे ? तो के ते शाखा या प्रमाणे कहे| वाय ते. ते जेमके-उच्च नागरी १, विद्याधरी २, वज्री ३ अने मध्यमिका. ए चार कौटिक गणनी शाखा बे. ते कुलो कयां बे ? तो के कुलो या प्रमाणे कड़ेवाय बे. ते जेमके - पहेलुं बंज लिप्त, बीजं । वस्त्रलिप्त, त्रीजुं वाणिज्य अने चोथुं प्रश्नवादनक. व्याघ्रापत्य गोत्रवाला ने कौटिक तथा काकं|दिक उपनामवाला स्थविर सुस्थित छाने स्थविर सुप्रतिबुद्धना श्रा पांच स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध इता. ते श्र प्रमाणे- स्थविर आर्यदिन १, स्थविर प्रियग्रंथ २, काश्यप गोत्रवाला स्थविर विद्याधरगोपाल ३, स्थविर ऋषिदत्त ४ अने स्थविर दत्त ५. स्थविर प्रियग्रंथनो संबंध कहे बे. त्रणसो जिनजवन, चारसो लौकिक प्रासाद, श्रढारसो ब्राह्मणनां घर, बत्रीशसो वणिकनां घर, नवसो बगीचा, सातसो वात्र, बसो कूवा अने सातसो दानशालाथी विराजित ने अजमेरनी नजदी कमां श्रावेल एवा सुनटपाल राजाना दर्षपुर नामना नगरमां एक वखत श्री प्रियग्रंथ सूरि पधार्या. अन्यदा ब्राह्मणोए त्यां यज्ञमां बकराने होमवानो यरंज कर्यो. त्यारे प्रियग्रंथ सूरिए श्रावकना हाथमां वासदेप आपीने ते बकरा | उपर नखाववा व तेने अंबिकाथी अधिष्ठित कर्यो. एटले ते बकरो आकाशमां रहीने बोलवा लाग्यो के " अरे ब्राह्मणो ! तमे मने बांधीने लाव्या वो थने मारो होम करवा व तमे मने मारी नाखवा धारो बे, परंतु जो तमारी पेठे हुं निर्दय थाउं तो हुं तमने बधाने क्षण वारमां मारी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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