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________________ AGRAASARAM उथी शोजतो एवो. वली ते कलश केवो ने तो के प्रतिपूर्ण एटले जरा पण न्यून नहीं एवा जे | मंगलनेदो कहेतां मंगलना प्रकारो, तेनी जे समागम कहेतां संकेत तेना स्थानकरूप; अर्थात् ४ जेम संकेत करी राखेला स्थानक प्रत्ये माणसो अवश्य दाखल थाय , तेम था कलश पण दृष्टि-18 गोचर थयाथी सर्व प्रकारनां जे मंगलो, ते पण प्राप्त थाय ने एवो नाव जाणवो. वली ते कलश केवो ने तो के प्रवररत्नो एटले अत्यंत उत्तम उत्तम जातिनां जे रत्नो, तेए करीने शोजतुं जे कमल , तेना पर रहेलो एवो; अर्थात् रत्नोए करीने विकखर एटले प्रफुतित थएबुं जे कमल, तेना पर ते कलश मूक्यो हतो एवो नावार्थ जाणवो. वली ते कलश केवो ने तो के नयन कहेतां जे आंखो,8 ते प्रत्ये नूषण करनारो, एटले आंखोने आनंद आपनारो, कारण के कमलनु विकस्वर थq ते जेम ६ कमलनं जूषण , तेम अांखोने यानंद थवो ते पण तेनं जूषण ले. वली ते कलश केवो ले तो के अत्यंत देदीप्यमान एवो. वली ते कलश केवो ने तो के सर्वतः कहेतां सर्व जे दिशा, ते प्रत्ये| निश्चये करीने दीपतो एवो. वली ते कलश केवो ने तो के सौम्य एटले अत्यंत पशस्त कहेतां अत्यंत उत्तम प्रकारनी जे लक्ष्मी, तेना तो स्थानक समान एवो. वली ते कलश केवो ने तो के सर्वे प्रकारना जे पापो कहेतां श्रमंगलो, तेए करीने परिवर्जित कहेतां बिलकुल रहित, अने तेथी करीनेज शुन्न भने देदीप्यमान देखातो एवो. तथा श्री एटले जे शोना, तेथी करीने प्रधान कहेतां अत्यंत मनोहर लागतो एवो. वली ते कलश केवो तो के सर्व क एटले सघली ऋतुमा उत्पन्न थतां जे सुगंध युक्त पुष्पो, तेनी गुंथेली जे माला, तेने स्थापन करेली ने जे कलशना कंगना नागमां, एवा कलशने त्रिशला क्षत्रियाणीए नवमा स्वप्नमां जोयो. है। पनी दशमा स्वप्नमां तेणीए पद्मसरोवरने जोयु. हवे ते पद्मसरोवर केवु ने तो के तरुण कहेता है नूतन एटले नवो उगेलो जे सूर्य, तेनांजे किरणो, तेनए करीने बोधित एटले विकखर थएलांजे सहस्रपत्रो कहेतांमोटा मोटांजे कमलो, तेठए करीने अत्यंत सुगंधीवाद्यं तथा जरा पीलाश अने रताश JamEducation, For Private Personal Use Only
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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