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________________ कल्प ॥३॥ CRECRUADSAURAHAOGACASSACROST मारतुंडे पाणी जेनुं एवं. वली ते पद्मसरोवर केवु दे तो के जलचर कहेतां पाणीमां वसनाराजे प्राणी, सुबो तेजनोजेसमूह, तेणे करीने परिपूर्ण कहेतां चारे बाजुएश्री व्याप्त थएयु एवं. वली ते पद्मसरोवर के है। तो के मत्स्य कहेतां माउलाए करीने वपराइ रहेलो ने पाणीनो समूह जेनो एवं. वली ते पद्मसरोवर । केवु ने तो के ज्वलत् कहेतां देदीप्यमान एवं. शाथी देदीप्यमान, ते हवे कहे . कमलो एटले सूर्यना ६ प्रकाशथी विकखर थतां कमलविशेषो, कुवलयो कहेतां चंजना प्रकाशश्री विकासने पामतां कमलवि-18 शेषो, उत्पल एटले लाल रंगनां कमलो, तामरस एटले मोटा मोटां कमलो, तथा पुंडरीक एटले है सफेद रंगनां कमलो, एवी रीते जुदी जुदी जातिनां कमलोनो विस्तीर्ण अने फेलावो पामतो एवो र जे श्रीसमुदय कहेतां शोजानो जे समूह ( कमलोने तो शोजाना समूहथीज शोलापणुं मले बे, पण 8 कंश तेमने सूर्यनां बिंब श्रादिकनी पेठे देदीप्यमानपणुं होतुं नथी) तेणे करीने जाणे देदीप्यमानज लागतुं होय नहीं, ए, पद्मसरोवर. (एवी रीते कविए एटले श्रीनबाहुखामिजीए अत्रे है उत्प्रेक्षा अलंकार मूक्यो बे.) वली ते पद्मसरोवर केवु दे तो के रमणीय कहेतां मनने अत्यंत यानंद उपजावे एवी के रूपनी शोजा जेनी एवं. वली ते पद्मसरोवर केवु ले तो के प्रमुदित कहेतां । अत्यंत हर्षित थएबुं बे अंतः कहेतां अंतःकरण जेनुं एवाजे जमराना अने मत्त कहेता मदोन्मत्त । थएली जे जमरी, तेजेना समूहो,तेए करीने अवविह्यमान कहेतां चुंबन करातां ले कमलो जेमां एवं. वली ते पद्मसरोवर के बे तो के कादंब जातिनां पदी, बलाका कहेतां बगलांजे, चक कहेता, चक्रवाक नामनां पदी, कलहंस एटले कल कदेतां मधुर डे शब्द जेनो एवा जे हंसो एटले 8 राजहंसो, तथा सारस कहेता लांबाडे घुटणो जेना एवां एक जातिनां पक्षी इत्यादिक जे गर्वित थएहै लांडे एटले धावा मनोहर स्थानकनी प्राप्तिथी थएलो अहंकार जेउने, एवाजे शकुनिगण कहेता है। पक्षीनी जातिऊनाजे समूहो, तेऊनांजे इंछ कहेतां स्त्रीजरतारोनां जे जोमलां, तेए करीने सेवातुं ||॥ ३२ ॥ पाणी जेनुं एवं. वली ते पद्मसरोवर केवु ने तो के पद्मिनी एटले जे कमलिनी, तेउनांजे पत्रो कहेतां पांद-13 8 मांउ, ते पर लागेला एटले चोंटेला जे जलविंचुनिचय कहेतां पाणीउनां बिंडुर्जुना जे समूहो, तेणे क Jain Eucation For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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