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________________ खाधी. त्यारे कुलपति पण प्रजुने श्रावी कहेवा लाग्यो के हे वर्धमान ! पदी पण पोतपोताना मालानुं रक्षण करवामां दद होय , थने तुं तो राजपुत्र थश्ने पोताना श्राश्रमर्नु रक्षण करवाने केम अशक्त थाय बे ? त्यारे प्रनुए विचायु के मारा यहीं रहेवाश्री श्रामने श्रप्रीति थाय , एम विचारी असाम सुदि पूनमश्री मांगी पंदर दिवसो गया बाद वर्षाकालमां पण प्रनु पांच अनिग्रहो लश्ने अस्थिकग्राम प्रत्ये गया. ते पांच अनिग्रहो नीचे प्रमाणे जाणवा. अप्रीति उपजे एवा घरमा मारे वास करवो नहीं, हमेशां प्रतिमा धारीने रहे, गृहस्थीनो विनय करवो नहीं, मौन रहे, तथा हाथमांज थाहार करवो. __ हवे एवी रीते श्रमण जगवंत श्री महावीर खामी एक वर्ष भने एक मास सुधी वस्त्रधारी रह्या, तथा ते वार पड़ी वस्त्ररहित रह्या, तथा हाथरूपीज पात्रवाला रह्या. प्रजुनुं वस्त्ररहितपणुं| नीचेना वृत्तांतथी जाणवू. | प्रजुए दीक्षा लीधा बाद एक वर्ष अने एक मास गया बाद दक्षिणवाचाल नामना नगरनी पासे सुवर्णवाबुका नामनी नदीने किनारे कांटामां जरावाथी अर्धं देवष्य वस्त्र पडी जते । बते प्रजुए सिंहावलोकनथी तेनी पाठल दृष्टि करी. अहीं केटलाको कहे डे के ममताश्री प्रजुए है। पाउल जोयु; अने वीजा केटलाको कहे डे के ते स्थं मिल जगो पर पड्यु के अस्थं मिल जगो पर पड्युं, ते जोवा माटे प्रजुए पालुं वाली जोयु; अने केटलाको कहे जे के श्रमारी संततिमां वस्त्र पात्र सुलन या दुर्लन थशे, ते जोवा माटे पालुं वाली जोयु, तथा केटलाक वृको वली एम कहे पाने के कांटामां वस्त्र जरायु, तेथी पोतानुं शासन कंटकबहुल थशे एम विचारी पोते निर्लोनी होवाथी ते अर्धं वस्त्र प्रजुए पालुं लीधुं नहीं.. । हवे ते वस्त्र प्रजुना पिताजीना मित्र एवा कोश् ब्राह्मणे लीधुं, अने अर्धं तो प्रजुए तेने पहेलांज थापी दीधुं हतुं. ते वृत्तांत नीच प्रमाणे जाणवू. Jain Education Instional For Private Personal use www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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