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________________ कल्पन 16एम विचारी क्रोधथी रासमी लइ मारवा माटे ते प्रजु तरफ दोड्यो. एटलामांझे ते वृत्तांत अव-181 सुबो० विज्ञानथी जाणीने गोवालीश्राने श्रावीने शिक्षा करी. ॥६ ॥ | पठी इथे प्रजुने विनंति करी के हे प्रजु ! तमोने घणा उपसर्गो थवाना , माटे चार वर्ष सुधीर वैयावृत्य माटे हुँ आपनी पासेज रहुं. त्यारे प्रजुए कह्यु के हे देवें ! एवं कदापि थयुं नश्री, थतुं । नश्री, अने शशे पण नहीं, केमके तीर्थंकरो को देवें अथवा असुरेंनी सहायथी केवलझान । उपार्जन करता नथी, पण फक्त पोतानांज पराक्रमथी केवलज्ञान उपार्जन करे बे. त्यारे इंछ पण मरणांत उपसर्गने टालवा माटे प्रजुनी मासीना पुत्र सिद्धार्थ व्यंतरने प्रनुनी वैयावृत्य माटे स्थापीने । पोते देवलोके गयो. हा ते वार पछी प्रजुए सवारमा कोसाग नामना सन्निवेशमां बहुल नामना ब्राह्मणने घेर "मारे पात्र सहित धर्म प्ररूपवो” एम विचारी पहेलुं पारणुं त्यां गृहस्थना पात्रमा परमान्नथी कर्यु ते वखते चेलो-3 रक्षेप, गंधोदकनी वृष्टि, इंसुनिनो नाद, "अहो दानमहो दानं” इत्यादि उद्घोषणा, तथा वसुधारानी वृष्टि, एम पांच दिव्यो प्रगट थयां. | त्यांथी प्रजु विहार करीने मोराक नामना सन्निवेशमा पुश्त नामना तापसना आश्रममां गया. हत्यां सिद्धार्थ राजानो मित्र एवो ते कुलपति प्रजु पासे श्राव्यो. प्रजुए पण प्रर्वोच्यासथी मलवा माटे हाथ पहोला कर्या. पड़ी तेनी प्रार्थनाथी प्रजु पण एक रात्रि तिहां रहीने पोते निरागी । है चित्तवाला हता, पण तेना आग्रहथी त्यां चोमासुं रहेवार्नु कबुल करीने प्रनु बीजी जगोए वि-है। हार करवा लाग्या. आठ मास सुधी विहार करीने पाबा प्रजु वर्षाऋतु गालवा माटे त्यां आव्या.* तथा त्या आवीने कुलपतिए आपेली घासनी फुपमीमा रह्या. त्यां बहारना नागमाथी घास नहीं | मलवाथी अन्य तापसोए पोतपोतानी फुपमीठमांश्री निवारण करेली गायो प्रजुश्री मंमित थयेली|8 कुंपडीने निःशंकपणाथी खावा लागी. त्यारे ते कुंपमीना स्वामीए कुलपति श्रागल तेनी राव Jain Educati o nal For Private & Personal Use Only Fejainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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