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________________ ते अक्षत जेवू देखाशे अने तेनुं एक लाख सोनामोहोर जेटर्बु मूख्य श्रशे, अने पनी आपणे ते धन बहेंची लश्शु, तेथी आपण वन्नेनुं दारिद्य चूर्ण थशे. एवी रीते तेणे प्रेरणा करेलो ब्राह्मण फरीने पालो प्रनु पासे आव्यो, पण लहाथी मागणी कर्या विना एक वर्ष सुधी प्रजुनी पाउन न-2 म्यो,अने पबी पोतानी मेले पमी गयेधुं ते अर्धं वस्त्र लश्ने चालतो थयो; माटे एवी रीते प्रजुए सवस्त्रधर्म | प्ररूपवा माटे एक वर्ष अने एक मास सुधी वस्त्र धारण कर्यु, अने सपात्रधर्म स्थापवा माटे पहेलु पा-17 रणुं पण गृहस्थना पात्रमा प्रजुए कर्यु, श्रने त्यार पठी डेक जीवित पर्यंत प्रज्जु वस्त्र तथा पात्र विना रह्या. ___एवी रीते विहार करता एवा प्रनुनी को दिवसे गंगाने कांवे सुक्ष्म माटीवाला कादवमां प्र तिबिंबित थयेली पदपंक्तिमा चक्र, ध्वज, अंकुश आदिक लक्षणोने जोश्ने पुष्पक नामनो साहै मुछिक विचारवा लाग्यो के अहींथी कोइ चक्रवर्ती एकाकी चाल्यो जाय , माटे जश्ने हुं तेनी सेवा करूं, के जेथी मारो मोटो उदय थाय. एम विचारी तुरत ते पगलांने अनुसारे चालीने ते प्रजुनी पासे श्राव्यो, अने तेमने जो विचारवा लाग्यो के अरे ! हुं तो फोकटज मोटुं कष्ट वे४ीने पण सामुजिकशास्त्र नएयो; जे श्रावी रीतनां लक्षणयुक्त थश्ने पण साधु थर व्रतकष्टने है आचरे ; माटे सामुजिकशास्त्रनुं पुस्तक तो हवे मारे पाणीमांज बोलवू. | एटलामां दीधेल के उपयोग जेणे एवो इंच तुरत त्यां श्रावीने प्रजुने नमस्कार करीने ते पुप्पकने कहेवा लाग्यो के हे सामुडिकवेत्ता ! तुं खेद कर नहीं; तारं शास्त्र सत्यज बे; आ ल-18 दणश्री या प्रनु त्रणे जगतने पूजनीक, तथा सुरासुरना पण स्वामी, तथा सर्व प्रकारनी उत्तम संपदाना आश्रयनूत एवा तीर्थंकर थशे; केमके आ प्रजुनी काया परसेवाना मेल रहित , श्वासोश्वास सुगंधी ने, रुधिर तथा मांस गायना ध सरखां श्वेत रंगनां बे, तथा इत्यादिक वाह्य अने अन्यंतर एवां एमनां अनेक सुलक्षणोने गणवाने कोण समर्थ डे ? इत्यादिक तेने 3 कहीने, तथा तेने मणि, सुवर्ण आदिकथी समृशिवान् करीने इंश पोताने स्थानके गयो. ते सा Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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