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________________ सेनिका शाखा नीकली वे, स्थविर श्रार्यतापसथी यहीं श्रर्यतापसी शाखा नीकली वे, स्थविर आर्यकुबेरथी अहीं आर्यकुबेरी शाखा नीकली वे अने स्थविर आर्यशषिपालितथी श्रार्यरुषिपालिता शाखा नीकली बे. जातिस्मरणज्ञानवाला अने कौशिक गोत्रवाला आर्यसिंह गिरिने चार स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. ते आ प्रमाणे- स्थविर धन गिरि १, स्थविर श्रार्यवज्र २, स्थविर प्रार्यसमित ३ श्रने स्थविर श्रईदिन्न ४. वहीं स्थविर आर्यवज्रनो संबंध कहे बे. तुंबवन नामना गाममां सुनंदा नामनी पोतानी स्त्रीने उधान सहित ( गर्जवंती ) मूकीने धन गिरिए दीक्षा लीधी. सुनंदाने पुत्र प्रसव्यो. ते पुत्रने पोताना जन्म वखतेज पितानी दीक्षा सांजलीने जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न थयुं. पी माने | उद्वेग आपवा माटे' हमेशां रमवा लाग्यो. तेथी तेनी माताए ते व मासनो थयो त्यारेज धन गिरिने श्रापी दीघो ( वहोरावी दीधो. ) तेथे गुरुना हाथमां श्राप्यो. गुरुए बहु जार होवाने लीधे तेनुं वज्र नाम आप्युं. ते पारणामां रह्यो थको सांजलीने अग्यार अंग जएयो. पठी ते ज्यारे त्रण वर्षनो थयो त्यारे तेनी माताए राजानी समक्ष विवादमां अनेक सुखमी - रमकमां विगेरेथी तेने ललचाव्यो तोपण तेणे ते नलीधुं अने धनगिरिए आपेलुं रजोहरणज लीधुं. त्यारपठी माताए पण | दीक्षा लीधी. वज्रने गुरुए दीक्षा पी. पढी या वर्षनी खरे एक वखत तेना पूर्व जवना | मित्र जुंनक देवोए उयिनीना मार्गमां वरसाद विराम पाम्ये बते कूष्मांनी निक्षा देवा मांगी ते वखते तेना अनिमिषपणोथी या देवपिंड वे तेथी कल्प्य वे एम धारीने ते ग्रहण नहीं कर वाथी संतुष्ट थयेला देवोए तेने वैक्रियलब्धि थापी तेवीज रीते बीजी वेलाए घेवर नहीं लेवाथी नजोगमन ( श्राकाशगामिनी ) विद्या थापी ते वज्र मुनिए पाटलीपुरमां धन श्रेष्ठीए करोड़ धन १ माता उद्वेग पामे तो तेना पर मोह न लावतां दीक्षा लेवा दे ए हेतु हतो. २ साकर कोलानी. ३ यांख मटकुं मारती न होवाथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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