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________________ दत्रा, श्लापत्या, यशोधरा, सौमनसी, श्रीसंनूता, विजया, विजयंती, वैजयंती, अपराजिता, श्वा, समाहारा, तेजा, अनितेजा तथा देवानंदा, ए पंदर रात्रिनां नाम जाणवां. तथा रुख, श्रेयान् , मित्र, वायु, सुप्रतीत, अनिचंड, माहेंज, बलवान् , ब्रह्मा, बहुसत्य, ऐशान, स्त्वष्टा, जावितात्मा, , वारुण, आनंद, विजय, विजयसेन, प्राजापत्य, उपशम, गंधर्व, अग्निवेश्य, शतवृषन, आ-|| तपवान् , अर्थवान् , झणवान् , नौम, वृषन, सर्वार्थसिक तथा राक्षस, एत्रीश मुहर्त्तनां नाम जाणवां. 1 जे रात्रिए श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रनु कालधर्म पाम्या यावत् सर्व मुखथी मुक्त थया ते । रात्रि स्वर्गश्री श्रावता श्रने जता एवा बहु देव अने देवीए करीने प्रकाशवाली थ. | जे रात्रिए श्रमण नगवान् श्री महावीर प्रनु कालधर्म पाम्या यावत् सर्व पुःखथी मुक्त थया ते रात्रि आवता अने जता एवा बहु देव अने देवीए करीने जाणे अत्यंत व्याकुल थक्ष होय तेम अस्पष्ट शब्दथी कोलाहलमयी थ. है। जे रात्रिए श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रनु कालधर्म पाम्या यावत् सर्व पुःखथी मुक्त थया ते रात्रिए अनूति नामना मोटा अने गोत्रथी गौतम अनगार शिष्यने झातकुलमा जन्मेला श्री/31 महावीर प्रजु उपरथी प्रेमबंधन तुटी गये बते अनंत अने अनुपम एवां यावत् उत्तम केवलज्ञान अने केवलदर्शन उत्पन्न थयां. तेनो वृतांत नीचे प्रमाणे जाणवो. | प्रजुए पोताना निर्वाण वखते गौतमने कोश्क गाममां देवशर्माने प्रतिबोधवा वास्ते मोकल्या हता. तेने प्रतिबोधीने पाला वलतां श्री गौतमखामी वीर प्रजुनुं निर्वाण सांजलीने जाणे वज्रथी हणाया होय तेम दणवार सुधी मौनपणाने धारण करीने रह्या, तथा पली बोलवा लाग्या के || आजे मिथ्यात्वरूपी अंधकार फेलावा मांड्यो , तथा कुतीर्थिरूपी घुवमो गर्जना करवा लाग्या है। ने, तथा उकाल, युफ, वैर आदिक रादसोनो फेलावो थशे. वली हे प्रजु ! तमारा विना आजे श्रा नरतक्षेत्र, राहुथी ग्रस्त थयेलो ने चं जेमां एवा आकाश सरखं, तथा दीपक विनाना जवन | Jain Education international For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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