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श्रा संसारमा पुरुषनी कांश शोजा नथी तेम स्त्री विनाना पुरुषनो कोइ पण विश्वास करतुं नथी | केमके स्त्री विनानो पुरुष विट कहेवाय. पड़ी गांधारीए कह्यु के सङनयात्रा एटले घेर सार || माणसो आवे तेनी परोणागत, संघ काढवो ते, पर्वनो उत्सव, घेर विवाहनां काम, उजाणी, पोखj || श्रने पर्षदा ए स्त्री विना शोचतां नथी. पड़ी गौरीए कह्यु के अज्ञानी एवां पदी पण निश्चे श्राखो दिवस पृथ्वीने विषे जमीने सांजरे पोताना मालामां जइ सुखेथी पोतानी स्त्री साथे रहे बे, माटे हे देवर ! तेवां पक्षीउथी पण शुं तमे मूढ दृष्टिवाला हो ? पढी लक्ष्मणाए पण कडं के स्नान श्रादि सर्व अंगनी शोनामां विचक्षण,प्रीतिरसे करीने सुंदर,विश्वासनुं पात्र अने पुःखने विषे । सहाय करनार एवं स्त्री विना निश्चे बीजु कोण थाय बे ? पढी सुसीमा पण कहेवा लागी के स्त्री विना घेर आवेला परोणा तथा मुनिराजोनी पण सेवानक्ति बीजु कोण करे ? अने पुरुष शोना है। पण शी रीते पामे ? एवी रीतनी बीजी पण गोपीउनी वाणीनी युक्तिथी तथा यमुना श्राग्रहथी| मौन रहेला एवा प्रजुने पण जरा हसता मुखवाला जोश्ने ‘निषेधं कर्यो नथी माटे मान्युं वे एवा 31 न्यायथी' नेमिकुमारे तो विवाह करवानुं कबुल कयु बे ए प्रमाणे ते गोपीए उंचे स्वरे उद्घोषणा * करी. ते प्रमाणे ( जादव ) जन बोख्या के मान्यु. | पनी नेमिकुमार माटे श्री कृष्णे उग्रसेन राजानी पुत्री राजीमतीनी मागणी करी, अने कोष्टिक! नामना निमित्तियाने लग्ननो दिवस पूज्यो त्यारे तेणे कडं के श्रा वर्षाकालमां बीजां पण शुन कार्यो को करता नथी त्यारे गृहस्थीनुं मुख्य कार्य जे विवाह के तेनी तो वातज शी करवी ? आपली समुपविजय राजाए निमित्ताने कडं के श्रा वखते कालदेपनी जरुर नश्री, केमके श्री कृष्णे घणी महेनते नेमिकुमारने विवाह माटे हा पमावी बे; माटे विवाहमां विघ्न न थाय एवो जे नजदीकनो दिवस होय ते तुं कहे. त्यारे निमित्तिए पण श्रावण सुदि बहनो दिवस कह्यो.
उत्तम श्रृंगार युक्त, प्रजाने हर्ष पमामनारा, रथमां बेठेला, उत्तम बत्र धारण कर्यु डे एवा तथा
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