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________________ ना सिंहासनथी नहीं बहु नजदी कमां, तेम नहीं बहु बेटे, एवी रीते तेथे एक यवनिका कडेतां कनात तणावी. हवे ते कनात केवी तो के नाना प्रकारनां एटले जुदी जुदी जातिनां जे मणि, माणिक, रत्नो | विगेरे जवाहीरथी मंकित थाली, अने तेथी करीनेज अधिक रीते प्रेक्षणीय कहेतां जोवा लायक एवी. वली ते यवनिका कहतां कनात केवी तो के महार्घ्य कहे तां जेनुं अत्यंत मूल्य याय एवी. वली ते कनात केवी तो के वर कहेतां प्रधान एवं जे पत्तन कहेतां नगर, ते नगर पण केवुं तो के ज्यां उत्तम उत्तम जातिनां वस्त्रो वणाय बे, तथा ज्यां उत्तम उत्तम जातिनां रत्नो नीपजे बे, एवा नगरनी अंदर बनावेली. वली | ते यवनिका कहेतां कनात केवी तो के अत्यंत कोमल ने स्पर्श जेनो एवी. वली ते कनात केवी तो के उत्तम जातिना रुनुं बनावेलुं वारिक एवं जे सुतर, तेनी सेंकडो गमे जे रचना, ते ए करीने मनने श्राश्वर्य उपजे एवो बे ताणं कदे तां ताणो जेनी अंदर एवी. वली ते कनात केवी तो के इहामृग कहेतां वरु, रुपन कहेतां बलदो, तुरग कहे तां घोडा, नर कहेतां मनुष्यो, मगर कहेतां मगरमछो, विहंग कहेतां जुदी जुदी जातिनां पक्षी, व्याल कहेतां सर्पो, किन्नर कहेतां किन्नरो, रुरु कहेतां एक जातिनां हरिणो, सरज कहेतां श्रष्टापद नामनां प्राणी, चमरी कहेतां जेनां पुंडकांना वालोनां चामरो बने बे एवी चमरी गायो,कुंजर कहेतां हाथी, तथा वनलता कहेतां श्रटवीमां यती चंपक, यांबा विगेरेनी लतार्ज, पद्मलता कहेतां कमलनी लतार्ज, के जेर्ज पुनियामां प्रसिद्ध ठे, एवी रीते उपर वर्णवेलां सघलांनी जे रचना कहेतां चित्रकामो, तेर्जए करीने चित्र कहेतां मनने अत्यंत श्राश्चर्य उपजावनारी एवी रीतनी अभ्यंतर यव|निका कहतां तेजरने (राणीवासने) बेसवानी जे कनात, तेने रचावीने, तेणे ( राजाए) तेनी छंदरना जागमां एक सिंहासन मंगाव्युं. ते सिंहासन केतुं तो के नाना प्रकारनां जे मणि माणेका दि कुबेरात, तेनी जे रचना, तेणे करीने चित्र कहेतां चित्तने आश्चर्य उपजावे एवं वली ते सिंहासन के तो के गादी छाने कोमल तकी आए करीने याठादित करेलुं एवं वली ते सिंहासन के तो के श्वेत | कहेतां सफेद एवं जे मलमल श्रादिकनुं सुकुमाल वस्त्र, तेथे करीने प्रत्यवस्तृत कहेतां पातुं उपर या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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