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________________ कल्प सुबो ॥६ को. तेम करीने पाणी पीधा वगर बहना तप सहित, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र साथे चंजनो योग है आवते ते इंजे मावा खन्ना पर धारण करेला एक देवष्य वस्त्रने लश्ने प्रजु एकला एटले तू ॥ रागद्वेषनी सहाय विना, अद्वितीय एटले जेम षनदेव प्रजुए चोसठ हजार राजा साथे, मल्लिनाथ अने पार्श्वनाथजीए त्रणसो साथे, वासुपूज्यजीए उसो साथे, तथा वाकीना जिनेश्वरोए जेम एक हजार साये दीक्षा लीधी हती, तेम वीर जगवाननी साथे कोइ पण नहोतुं, तेथी अद्वितीय एटले एकाकी, तथा व्यथी केशलोचे करीने मुंडित थयेला तथा नावथी है क्रोधादिकने पूर करवाथी मुंमित थयेला घरथी नीकली श्रागारीपणानो त्याग करी एटले अना गारताने (साधपणाने प्राप्त थया. तेनो विधि नीचे मुजब जाणवो. एवीरीते उपर कहेवा प्रमाणे कयों ने पंचमुष्टि लोच जेणे एवा ते प्रजु ज्यारे सामायिक करवाने श्छता हवा, त्यारे इंजे सघलो । वाजिन श्रादिकनो कोलाहल बंध कराव्यो. त्यार पडी प्रजुए "नमो सिकाणं" इत्यादि कथनपूर्वक हूँ|"करेमि सामाश्यं सव्वं सावऊं जोगं पञ्चकामि” इत्यादि पाठ जच्चारण कर्यो; पण "ते" एवो पाठ बोल्या नहीं, केमके एवो तेमनो कल्प कहेतां श्राचार बे. एवी रीते चारित्र ग्रहण कर्यु के तुर-है तज प्रजुने चोथु मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न थयु. ते वार पठी सादिक देवो प्रजुने वांदीने नंदी18|श्वर छीपनी यात्रा करीने पोतपोताने स्थानके गया. टू। एवी रीते महोपाध्याय श्री कीर्ति विजयगणिना शिष्योपाध्याय श्री विनयविजयगणिए रचेली है कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टीकाना गुजराती भाषांतरमां पांचमो क्षण समाप्त थयो. श्रीरस्तु. ॥ षष्ठं व्याख्यानं प्रारज्यते ॥ । ते वार पड़ी चार ज्ञानवाला लगवान् बंधुवर्गनी रजा लश्ने विहार करवा लाग्या. बंधुवर्ग 5६॥ पण ज्यांसुधी प्रजु दृष्टिगोचर रह्या, त्यांसुधी त्यां रीने “हे वीर" हवे अमे तमारा विना शून्य वन सरखा घेर प्रत्ये केम जश्शुं ? वली हे बंधु ! कोनी साथे अमे वातचित करीने सुख नोग ACROSCAMSANSARICKASSOCIENCERCOSMOCRACANCERS Jain Education internationa For Private & Personal Use Only wam.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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