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, गोल ६, मध , मद्य श्रने मांस ए. अजीक्ष्णना ग्रहण करवायी कारणे कल्पे वे एम समजवं अने नवना ग्रहण करवाथी को दिवस पक्वान्ने पण ग्रहण कराय बे. तेमा विकृति सांचयिका अने श्रसांचयिका ए बे प्रकारनी . तेमां उध, दही, पकवान्न ए नामनी बहु काल|| सुधी राखी शकाय नहीं ते असांचयिका जाणवी. रोगना कारणे, गुरु, बाल थादिने उपग्रह करवाने अर्थे अथवा श्रावकना निमंत्रणथी ते लेवी. घी, तेल थने गोल ए नामनी त्रण विकृति सांचयिका जाणवी. ते त्रण विकृति प्रतिलाजता गृहस्थीने कहे, के 'हजु घणो वखत रहेवारों ने
तेथी अमे ग्लान थादिने माटे लश्शु.' त्यारे ते गृहस्थी कहे के 'चोमासा सुधी लेजो, ते घणी जे.' दैत्यारे ते सेवी अने वाल श्रादिने देवी, पण तरुणने आपवी नहीं. जो के मध, मांस श्रने माखणनो
(मुनिने ) जावजीव सुधी त्याग होय ने तोपण अत्यंत अपवाददशामां बाह्य परिजोग विगेरेने । माटे कोई दिवस ग्रहण करवी, पण चोमासामां तो सर्वथा निषेध ने. १७. । ६ चोमासु रहेला साधुने विषे वैयावच्च करनारा मुनिए गुरुने प्रथमथी एम कही राखेचु होय 3 के 'हे नगवन् ! ग्लानने माटे कांश वस्तुनो खप ?' ए प्रमाणे वैयावच्च करनार को मुनिए ।
व्ये बते ते गुरु कहे के 'ग्लानने वस्तु जोए बीए ? जोश्ती होय तो ग्लानने पूडो के उध विगेरे है। केटली विगयनो तमने खप ?' ते ग्लाने पोताने जोश्ता प्रमाणमां को बते ते वैयावच्च करनारे । गुरुनी पासे श्रावीने कदेवू के 'ग्लानने आटली वस्तुनो खप जे.' त्यारे गुरु कहे के 'जेटबुं प्रमाण 3
ते ग्लान कहे जे तेटला प्रमाणमा ते विगय तारे लेवी.' पड़ी ते वैयावच्च करनार गृहस्थ पासे मागे टूथने मागणी करतां वैयावच्च करनार उध विगेरे ते वस्तु प्राप्त थाय तो पनी ग्लाने कह्या प्रमाण है।
जेटली मले एटले राखो,थयु' एम गृहस्थने कहे. गृहस्थ एम कहे के 'हे जगवन् ! 'थयु' एम केम कहो बो?' त्यारे साधु कहे के 'ग्लानने एटलोज खप.' था प्रमाणे कहेता साधुने कदाच गृहस्थ कहे के
१ए नवश्री जूदी विगय .
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