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________________ कल्प० ॥१२८॥ दाज्या नहीं, तरवारनी धारा उपर चाल्या पण छेद पाम्या नहीं, काला सर्पना दरमां रह्या पण | डंखाया नहीं तथा काजलनी कोटमीमां रह्या तोपण माघ लाग्यो नहीं. वेश्या रागवाली दती, हमेशां तेना कदेवा प्रमाणे चालनारी दती, षडूरस जोजन मलतुं इतुं, सुंदर चित्रशाली दती, मनोहर शरीर दतुं, नव्य वयनो संगम हतो ( यौवन वय इती ) अने काल पण घादलांथी श्याम ( वर्षा शतुनो ) दतो तोपण जेणे यादरपूर्वक कामने जीत्यो एवा युवतीने प्रतिबोध पमावामां कुशल स्थूलन मुनिने हुं वंदन करूं तुं. हे कामदेव ! मनोहर नेत्रवाली स्त्री तो तारुं मुख्य अस्त्र बे, वसंत रुतु, कोयल, पंचम स्वर तथा चंद्र ए तारा मुख्य योद्धा के थने विष्णु, ब्रह्मा तथा शिव विगेरे तो तारा सेवको के तोपण छारे हताश ! तुं श्रा मुनिथी केवी रीते हणायो ? हे मदन ! तें नंदिषेण, रथनेमि ने मुनीश्वर कुमारनी बुद्धिथी या मुनिने पण जोया ? तें एटलुं पण न जाएयुं के रणसंग्राममां मने मारीने या मुनि तो नेमिनाथ, जंबूस्वामी अने सुदर्शन शेवनी |पटी चोथा थशे ? श्रीनेमिनाथथी पण शकटालसुतनो विचार करतां श्रमे एने एकनेज वीर पुरुष मानीए बीए, कारण के श्री नेमिनाथजीए तो पर्वत उपर जश्ने मोहने जीत्यो पण या मुनिए तो | | मोहना घरमा दाखल थइने मोहने वश कर्यो.” एक वखते बार वर्षना दुकालने अंते संघना थामथी श्री जद्रबाहु स्वामी पांचसो साधुचने दृष्टिवादनी हमेशां सात वाचना श्रापता हता. सात वाचनाथी पण अतृप्त रहेता बीजा साधु उमि थयाथी विहार करी गया. श्री स्थूलन एकला रह्या. ते बे वस्तुए बां दश पूर्व जएया. एक वखत वंदनने माटे श्रावेल या साध्वी प्रमुख पोतानी बेनोने सिंहनुं रूप देखामवानी हकीकतथी खेद पामेला श्री जद्रबाहु स्वामीए स्थूलनने कयुं के “ वाचना माटे तमे अयोग्य ठो.” पढी संघना थाग्रहाथी "बीजाने तमारे वाचना यापवी नहीं" एम कहीने बाकीनां For Private & Personal Use Only Jain Education International सुबो० ॥११॥ www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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