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चार पूर्वनी सूत्रधी वाचना थापी कयुं वे के "जंबूस्वामी बेला केवली थथा तथा प्रजव प्रभु शय्यंजव, यशोद्र, संभूतिविजय, जडवाहु अने स्थूलन एव श्रुतकेवली यया.”
गौतम गोत्रवाला स्थविर श्रार्यस्थलजने बे स्थविर शिष्य हता. एक एलापत्य गोत्रवाला स्थविर श्रार्यमहागिरि ने बीजा वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर यार्य सुदस्ति तेमनो संबंध आ प्रमाणे बे- जिनकल्प विछेद गये उते पण धार्यमहागिरिए जिनकल्पनी तुलना करवा मांगी. " जिनकल्प विच्छेद गये बते पण जे धीर पुरुषे जिनकरूपनी तुलना करी ते मुनिर्उने विषे रुपन | समान ने श्रेष्ठ चारित्रने धारण करनार श्रार्यमहागिरिने हुं वंदन करुं बुं. जेणे जिनकम्पनी परिकर्मा (तुलना ) करी छाने जेनी स्तवना श्रेष्ठीना घरमां श्रार्य सुदस्तिए करी ते श्रार्यमदागिरिने हुं वंदन करूं बुं. जेने सीधे संप्रति राजा सर्व प्रसिद्ध रुद्धि अने परम चारित्रने पाम्या ते मुनिप्रवर श्री आर्यसुहस्तिने हुं वंदन करुं हुं”. जे श्रार्यसुदस्ति महाराजाए साधुर्जनी पासे निक्षा मागता निक्षुकने दीक्षा यापी हती ते निक्कुक मरण पामीने श्रेणिकनो पुत्र कोशिक, तेनो पुत्र उदायी, तेनी पाटे नव नंद, तेनी पाटे चंद्रगुप्त, तेनो पुत्र बिंदुसार, तेनो पुत्र अशोकश्री, तेनो पुत्र कुणाल ने तेनो पुत्र संप्रति नामे थयो. तेने जन्मतांज तेना दादाए राज्य श्राप्यं. |पी रथयात्रामां प्रवृत्त थयेल श्री आर्यसुहस्तिने जोड़ने तेने जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न ययुं. तेथी तेणे सवा लाख जिनालय, सवा क्रोम नवीन जिनबिंब, बत्रीश हजार जीर्णोद्धार, पंचाएं हजार पीतलनी प्रतिमा तथा हजारोगमे दानशालाउंथी त्रण खंम पृथ्वीने पण विभूषित करी. ( यहीं किरणावलीकारे सवा क्रोम जिनजवन एम कट्टेल बे ते विचारवा जेवुं बे, कारण के अंतर्वाच्य श्रादिमां 'सपादलक्ष' एटले सवा लाख एम देखाय बे ). अनार्य देशोने पण करथी मुक्त करीने प्रथम साधुवेष धारण करनार सेवकोने मोकली साधुउने विहार करवाने योग्य कर्या ने पोताना | सेवक राजाउने जैनधर्मने विषे रक्त कर्या. तथा वस्त्र, पात्र, अन्न, दुधी आदि प्रासुक वस्तु जे
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