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कल्पण वेचता हता तेने संप्रति राजाए कयु के "तमे श्रावता जता साधुऊनी बागल पोतानी वस्तु
है मूकजो अने ते पूज्य जे वस्तु ग्रहण करे ते तेने श्रापजो. श्रमारो खजानची ते वस्तुनुं तमाम , ॥११॥
मूल्य तथा तमारो इडित लाल गुप्त रीते आपशे.” ते राजानी श्राज्ञाश्री तेम करवा लाग्या
अने ते अशुरू बतां पण शुद्ध बुझिथी साधु ग्रहण करवा लाग्या.. 8 वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर आर्यसुदस्तिने व्याघ्रापत्य गोत्रवाला सुस्थित अने सुप्रतिबुझ हूँ नामना कोटिक अने कार्कदिक एवा बे स्थविर शिष्य थया. एक क्रोमवार सूरिमंत्रनो जाप कर
वाथी सुस्थित मुनि कोटिक कहेवाता हता अने काकंदी नगरीमा जन्मेला होवाथी सुप्रतिबुद्ध मुनि । कादिक कहेवाता हता. व्याघ्रापत्य गोत्रवाला सुस्थित श्रने सुप्रतिबुद्ध एवा स्थविर कोटिक अने कादिकने कौशिक गोत्रवाला स्थविर आर्यसदिन्न शिष्य हता. कौशिक गोत्रवाला स्थविर ४
आर्यइन्डदिन्नने गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यदिन्न शिष्य इता. गौतमत्रवाला स्थविर आर्यदिन्नने है। & कौशिक गोत्रवाला अने जातिस्मरणशानवाला स्थविर आर्यसिंहगिरि शिष्य हता. कौशिक |
गोत्रवाला अने जातिस्मरणशानवाला स्थविर आर्यसिंहगिरिने गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यवन शिष्य हता. गौतम गोत्रवाला स्थविर श्रार्यवजने उत्कौशिक गोत्रवाला स्थविर आर्यवज्रसेन 31 शिष्य हता. उत्कौशिक गोत्रवाला स्थविर श्रार्यवज्रसेनने चार स्थविर शिष्य हता. स्थविर | थार्यनागिल, स्थविर आर्यपौमिल, स्थविर आर्यजयन्त अने स्थविर आर्यतापस. स्थविर आर्यनागिलथी आर्यनागिला शाखा नीकली,स्थविर आर्यपौमिलथी आर्यपौमिला शाखा नीकली, स्थविर ।
आर्यजयन्तथी आर्यजयन्ती शाखा नीकली थने स्थविर आर्यतापसभी श्रार्यतापसी शाखा नीकली. __ हवे विस्तारवाली वाचनाथी स्थविरावली कहे . था विस्तर वाचनामां श्रार्ययशोजमश्री श्रा8| ॥११॥
प्रमाणे स्थविरावली जाणवी. तेमा घणा नेदो तो लेखकदोषना हेतुनूत जाणवा. बाकी स्थविहै रोनी शाखा अने कुलो प्राये करीने एक पण हाल जणातां नथी, ते बीजां नामथी तिरोहित
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