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________________ वेदना अर्थने जाणतो नथी ? कारण के “को जानाति मायोपमान् गीर्वाणान् इंऽयमवरुणकुबेरादीन् । कए पदोथी देवोनो निषेध प्रत्यक्ष देखाय बे, अने “स एव यज्ञायुधी यजमानोंऽजसा स्वर्गलोके ग-3 ति” ए पदथी देवसत्ता एटले देवोर्नु होवापणुं सिद्ध थाय बे, एवी रीतनो तारा मनमां संदेह 8 दाते. पण ते अयुक्त बे; केमके या पर्षदामां बेठेला देवोने तो हूं अने तुं बन्ने प्रत्यक्ष रीते जोए बीए. वली वेदमां जे "मायोपमान्” एवं देवोनुं विशेषण कयुं , ते तो तेनुं पण अनित्यपणुं । सूचवनारुं ॥इति सप्तम गणधर ॥ हवे नारकीना संबंधमां संदेहवाला एवा पंमितने विषे श्रेष्ठ अकंपित नामना पंमितने प्रजुए 8 जेवं हतुं तेवू कडं के तुं पण वेदना अर्थने जाणतो नथी ? केमके "नह वै प्रेत्य नरके नारकाः संति" इत्यादि पदोथी नारकीनो अनाव जणाय डे अने “नारको वै एष जायते यः शुमान्नम-18 नाति” इत्यादि पदोथी नारकसत्ता एटले नारकीर्नु होवापणुं सिक थाय बे, एवी रीतनो तारा मनमां संदेह बे, पण "नह वै प्रेत्य नरके नारका सन्ति” ए पदनो शो अर्थ के ? तो के परलोकने 3 विषे केटलाएक नारकी मेरु पर्वत आदिनी पेठे शाश्वता नथी, पण जे कोइ पाप आचरे ने ते नारकी थाय बे, अथवा नारकी मरीने फरी नारकीपणे उत्पन्न थता नथी एम "प्रेत्य नारका न है सन्ति” ए पद कहेलु २ ॥ इति अष्टम गणधर ॥ ही हवे पुण्यना संबंधमां संदेहवाला एवा पंमितने विषे श्रेष्ठ अचलत्रातृ नामना पंमितने प्रजुए जेवं हतुं तेवू कडं के तुं पण वेदनो अर्थ जाणतो नथी ? तारा संदेहy कारण प्रथम 'पुरुष एवेदं निं सर्व इत्यादि पद अग्निनूतिए कहेढुं ते बे, माटे तेने जे उत्तर त्यां कह्यो ले ते तारे ते प्रमाणेज जाणवो. तथा 'पुण्यः पुण्येन कर्मणा, पापः पापेन कर्मणा एटले पुण्य कर्मथी पुण्य थाय ने अने पाप कर्मथी| पाप थाय . इत्यादि वेदपदोथी पुण्य पापनी सिद्धि थाय ॥ इति नवम गणधर ॥ हवे परजवमां संदेहवाला एवा पंमितप्रवर मेतार्य नामना पंमितने प्रक्षुए जेवं हतुं ते कद्यु Jan Education For Private Personal Use Only
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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