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कल्प
| तेमने पूज्या, फल वस्त्र श्रादिकना दानथी तेमनो सत्कार कर्यो, अने उन्ना थवा विगेरेश्री तेमनु है सुबोध
है सन्मान कर्यु. एवी रीते थया थका तेश्रो दरेक श्रगामी राखेलां आसनो पर बेग; ते वार पड़ी ते । ॥४५॥
सिद्धार्थ राजा त्रिशला क्षत्रियाणीने पमदानी अंदर राखीने पुष्प तथा नालीयेर श्रादिक फलोए । करीने जरेला ने हाथ जेना (केमके खाली हाथे देव, गुरु, राजा तथा विशेषे करीने निमित्तियाने मलq नहीं, केमके फलथी फल मले )एवो राजा ते स्वप्नपाठकोने घणा विनयथी एम कहेवा लाग्यो के हे देवानुप्रियो ! आजे त्रिशला क्षत्रियाणी तेवी शय्यामां सुती जागती अर्थात् है अल्पनिडा करती तीथायावा प्रकारनां (गज. वृषन विगेरेनां) श्रेष्ठ चौद महा स्वप्नोने जोइने जागी। गइ, माटे हे देवानुप्रियो ! ते चौद श्रेष्ठ महा खप्नोमां हुँ विचारु ढुं के कयुं स्वप्न कल्याणकारी अने फलवृत्तिविशेष श्रापनारं थशे ? पड़ी ते स्वप्नपाठको सिद्धार्थ राजानी पासेथी ए स्वप्नोने 8 सांजलीने, जाणीने,हर्ष पामेला, संतोष पामेला, यावत् हर्षथी पूर्ण हृदयवाला थया बता ते स्वप्नोने सा-हूँ रीरीते हृदयमा धारी राखे ने अने हृदयमा धारी राखीने स्वप्नोना अर्थनो विचार करवा लाग्या है थने अर्थनो विचार करीने ते परस्पर मसलत करवा लाग्या अने मसलत करीने पोतानी बुद्धिथी। जाणेल के अर्थ जेए, परस्पर ग्रहण करेल वे अर्थ जेए, संशय पमते बते परस्पर पूजेलो अर्थ जेए, निश्चित करेलो ने अर्थ जेए, अवधारण करेल डे अर्थ जेए, एवा थया थका, सिद्धार्थ राजा
|पासे स्वप्नशास्त्रोने नच्चारता थका एम कोताहवा.अनुजवेलं. सांजलेलं, दीवेलं, प्रकृतिना विका-|| रथी उत्पन्न थएबुं, स्वनावे उत्पन्न थएबुं, चिंतानी परंपराधी उत्पन्न थएबुं, देवतादिकना उपदेशश्री ।। उत्पन्न थएबुं,धर्मकार्यना प्रनावथी उत्पन्न थएबुं तथा पापना उदयथी उत्पन्न थएवं, एवी रीते नव प्रकारनुं माणसोनुं स्वप्न जाणवू. पहेला प्रकारोथी दीठेवू शुज अथवा अशुज स्वप्न निरर्थक जाय , 5॥ ४५ ॥
। स्वप्न सार्थक थाय बे; रात्रिना चारे पहोरमां दीठेवू स्वप्नील बार, उ, त्रण तथा एक मासे अनुक्रमे फलदायक थाय बे. रात्रिनी नेवी बे घमीए जोएलुं स्वप्न
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