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________________ धारण करनारो था, श्रीमान् कद्देतां लक्ष्मीवान् था, यशखी कहेतां यशवालो था, प्रज्ञावान् कहेतां बुद्धिवालो था, नूरिकतां घणां एवां जे सत्व कहेतां प्राणी, ते प्रत्ये जे करुणादान कहेतां दयादान, तेने विषे शुंक कहेतां पराक्रमी था, अर्थात् प्राणी उपर दयालु था, जोगोए करीने श्राढ्य कदेतां सहित था, जाग्यवान् कहेतां जाग्यवालो था, तथा उत्तम प्रकारनं जे सौभाग्य तेथे करीने पण मनोहर था, प्रौढ कहेतां मोटी एवी जे श्री कहेतां लक्ष्मी अथवा शोना तेणे करीने युक्त था, वली कीर्त्तिए करीने पण तुं युक्त था, तथा हमेशां समस्त जगत्ने उपजीव्यक' कहेतां आजीविका देनारो, श्रने रक्षण करनारो था. वहीं किरणावलीकरे तथा दीपिकाकारे " कोटिंजर" एवो प्रयोग मूक्यो बे, ते व्याकरणथी | विरुद्ध होवाथी विद्वानोने विचारवा जेवो बे.) पण बीजा काव्ये करीने पण राजाने आशीर्वाद थापे बे, ते नीचे प्रमाणे जाणवुं. कल्याणमस्तु शिवमस्तु धनागमोऽस्तु, दीर्घायुरस्तु सुतजन्मसमृद्धिरस्तु ॥ वैरियोsस्तु नरनाथ सदा जयोऽस्तु, युष्मत्कुले च सततं जिनन क्तिरस्तु ॥ २ ॥ अर्थ- हे नरनाथ, तमने कल्याण थाश्रो, निरुपद्रवपणुं थाओ, धननुं श्रावागमन थाश्रो, लांबु श्रायुष्य थाओ, पुत्रजन्मनी समृद्धि यायो, वैरीओनो नाश थाओ, हमेशां तमारो जय थाओ तथा तमारा कुलमां हमेशां जिनेश्वर प्रजुनी नक्ति रहो. एव रीते महोपाध्याय श्री कीर्त्तिविजयगखिना शिष्य उपाध्याय श्री विनयविजयगणिए रचेली कल्पसूत्रनी सुवोधिका नामनी टीकाना गुजराती भाषांतरमां त्रीजो क्षण समाप्त थयो . श्रीरस्तु ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥ चतुर्थं व्याख्यानं प्रारभ्यते ॥ ते वार पढी ते सिद्धार्थ राजाए ते स्वप्नपाठकोने तेमना गुणोनी स्तुति करीने वांद्या, पुष्पादिकथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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