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को एक माणस उत्तम शेरडीना रसना घमा श्रेयांस कुमारने नेट तरीके आपवा श्राव्यो, तेमांथी एक घमो लश्ने तेणे प्रजुने कछु के "श्रा योग्य निदा श्राप ग्रहण करो.” त्यारे प्रजुए पण| पोताना हाथ पसार्या ( लांबा कर्या ) एटले श्रेयांसे सर्व घमानो रस रेकी दीधो, परंतु एक पण| बिंदु नीचे पड्यू नहीं, रसनी शिखा उपर उपर वधवा लागी. कहुं ले के-"जेना हाथनी अंदर हजारो : घमा समाइ जाय अथवा सर्वे समु समाश् जाय एवी जेने लब्धि प्राप्त थाय तेज पाणिप्रतिग्रही ( हस्तपात्री) थायः" अहीं कवि घटना करे ले के-प्रजुए पोताना जमणा हाथने कयु के | "अरे ! तुं जिदा केम लतो नथी?" त्यारे तेणे कडं के "हे प्रजु ! हुं श्रापनारना हाथनी नीचे शी रीते थालं ? कारण के पूजा, नोजन, दान, शांतिकर्म, कला, पाणिग्रहण, स्थापना, शुद्धता, प्रेक्षणे, हस्तकश्चर्पणे विगेरे कार्योमां हूं तो वपरातो बुं” एम कहीने जमणो हाथ स्थित थयो त्यारे (प्रजुए मावा हाथने शिक्षा सेवा कयु. तेना जवाबमां ) मावा हाथे कडं के "हुँ रणसंग्राममा सन्मुख थनाराब, अंक गणवामां तत्पर अनेमाबा पमखे सवा वि
विगेरेमां सहाय करनारो अने था जमणो हाथ तो जुगार आदि व्यसनवालो बे.” त्यारे जमणा हाथे कडं के "हुँ पवित्र डं, तुं पवित्र नथी.” त्यारपती (प्रजुए बंने हाथने समजाव्या के) "तमे राज्यलक्ष्मी उपार्जन करी|
श्रने अर्थीना समूहने दान देवावडे कृतार्थ करेल , वली निरंतर संतुष्ट बो तोपण दान देनारा है। ४ उपर दया लावीने हवे दान ग्रहण करो.” एवी रीते प्रजुए एक वर्ष सुधी बंने हाथने समजावीने 2
श्रेयांस कुमार पासेथी मलेला ताजा शेरमीना रसे करीने तेने पूर्ण कर्या. एवा श्री रुपनदेव । प्रनु तमारुं रक्षण करो. | श्रेयांस कुमारना दानने वखते नेत्रमा वर्षाश्रुनी धारा, वाणीरूपी फुधनी धारा अने शेरमीना रसनी धारा स्पर्धा वडे वधवा लागी अने तेज आशये ( तेनाथी सिंचायेवू ) धर्मरूपी वृक्ष वधवा
१ हस्तरेखा बताववी ते प्रेक्षण. २ हाथो देवो, कोल आपवो, वचन आपवं, ए सर्व हस्तकअर्पण समजवू.
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