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________________ कल्प ॥३१॥ SNOREDNISOLOGROCARROCHOCALDCROCORDCHIR-CHAMSHUSA जाति , जेने डोलर पण कहे जे ते, दकरजस् एटले पाणीना कणीया, रजतकलश कहेतां रूपानो बना-18 ₹ वेलो जे कलश ते,एवी रीते उपर जणावेली संघली वस्तुनी पेठे उज्ज्वल वर्णवालो. वली ते सिंह केवो , तो के मस्तक पर रहेलो, अर्थात् चित्रामणरूपे ध्वजना उपरना नाग पर चित्री राखेलो एवो. वली ते सिंह केवो ने तो के राजमान कहेतां पोताना सुंदरपणाथी अत्यंत शोनायुक्त थएलो एवो, वली ते सिंह केवो तो के थाकाशतलना मंगलने फोमी नाखवानेज जाणे उद्यमवालो थयो होय नहीं. एवो, अर्थात् पवनना ऊपाटाथी ध्वजा श्राकाश मार्गमां उंचे उंचे उड्या करती हती, अने तेथी करीने तेमां चित्रामण रूपे करेलो सिंह पण श्राकाश प्रत्ये उख्या करतो हतो; तेनापर कविए उत्प्रेक्षा करी के था , सिंह जे आकाश तरफ उख्या करे , ते शुं आकाशने फोमी नाखवानोज उद्यम करे ? एवो जा-2 वार्थ जाणवो. एवीरीते उपर वर्णन करेला सिंहना चित्रामणवालोध्वज. वली ते ध्वज केवो ने तो के मंद मंद अने सुखकारी एवो जे मरुत कहेता पवन, तेनुं जे श्राश्लेष कहेतां मलवु, तेणे करीने जे आंदोलन कहेतां चलायमान थवंतेने स्वजा जेनो एवो.अर्थात मंद मंद वाताएवा वायथी चलायमान थएलो. वली ते ध्वज केवो तो के अति प्रमाणवालो एटले मोटो एवो. वलो ते ध्वज केवो तो के माणसोने , जोवाने लायक ने स्वरूप जेनुएवो. एवीरीतना आठमा स्वप्नभां त्रिशला क्षत्रियाणीए ध्वजने जोयो. 15 5. हवे ते जोया बाद नवमा स्वप्नमां तेणीए रजतपूर्णकलश, एटले रूपाना बनावेला अने संपूर्ण 8 नरेला एवा कलश एटले कंचने जोयो. ते कलश केवो तो के जात्य कहेतां अत्यंत जंची जातिनुंद जे कांचन कहेतां सोनुं तेनी पेठे अत्यंत देदीप्यमान बे रूप जेनुं एवो, अर्थात् जेम उत्तम जातिना है सुवर्णतुं तेज अत्यंत निर्मल होय , तेम ते कलशनुं तेज पण अत्यंत निर्मल जाणवू. वली ते कलश केवो ने तो के निर्मल एटले बिलकुल मेल विनानुं जे पाणी, तेनाथी संपूर्ण रीते नरेलो, अने तेश्रीज 5/॥३१॥ ६ कल्याणने सूचवनारो एवो. वली ते कलश केवो तो के देदीप्यमान वे शोजा कहेतां कांति जेनी एवो. वली ते कलश केवो ने तो के कमलोनो कलाप कहेतां जे समूह, ते वडे करीने आसपास सर्वबाजु Jain Education a l For Private & Personal Use Only Jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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