________________
कल्प०
॥ ए६ ॥
Jain Education
| लाख अने सत्तावीस हजार भाविकाउंनी उत्कृष्ट श्राविकासंपदा थइ, केवली नहीं बतां पण केवली सरखा सामा त्रणसो चौदपूर्वीनी उत्कृष्ट संपदा थइ तथा चौदसो अवधिज्ञानी जनी, एक | हजार केवलज्ञानी जनी, अगीयारसो वैक्रियल ब्धिवाला मुनिर्जनी अने बसो मनः पर्यवज्ञानी जैनी संपदा यश तेमज एक हजार साधु मोदे गया ने वे हजार साध्वी मोदे गए. वली श्रावसो विपुलमतिर्जनी, बसो वादीनी तथा वारसो अनुत्तर विमानमां उत्पन्न थनारा मुनिर्जनी संपदा थइ.
पुरुषप्रधान अन् श्री पार्श्वनाथ प्रजुनी वे प्रकारनी मुक्तिमां जनारानी मर्यादा थइ. ते था | प्रमाणेः- पहेली युगांतकृद्भूमि ने बीजी पर्यायांतकृद्भूमि. तेमां श्री पार्श्वनाथ प्रभुथी आरंजीने चार पाट सुधी मोक्षमार्ग चालु रह्यो ते युगांतकृभूमि तथा प्रभुने केवलज्ञान थया पठी त्रण वर्षे कोइक मुनि मोके गया, तेथी ऋण वर्षथीज मोक्षमार्ग चालु थयो ते पर्यायांतकृभूमि जाणवी.
हवे ते कालने विषे धने ते समयने विषे पुरुषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रजु त्रीश वर्ष सुधी गृहस्थावस्थामां रहने, त्र्याशी दिवस सुधी उद्मस्थपर्याय पालीने ने कांइक ऊणा एटले त्र्याशी दिवस उठा सीत्तेर वर्ष सुधी केवलिपर्याय पालीने छाने एवी रीते एकंदर परिपूर्ण सीतेर वर्ष चारित्रपर्याय पालीने तथा एकसो वर्षनुं सर्व श्रायुष्य पूर्ण करीने वेदनी, आयु, नाम अने गोत्र कर्मनो दय थये बते आज अवसर्पिणीमां डुषमसुषम नामनो चोथो थारो घणो वीती गये बते या चोमासानो पहेलो मास, द्वितीय पक्ष, ते श्रावण मासनो शुक्लपक्ष, ते श्रावण मासना शुक्लपक्षनी या मने दिवसे समेत नामना | पर्वतना शिखर उपर तेत्रीश साधुर्जनी साथै जल रहित मासरूपणनो तप करीने विशाखा नक्षत्रमां | चंद्रयोग प्राप्त थये बते पहेला प्रहरने विषे बन्ने हाथ लांबा करी कायोत्सर्गध्यानमा रह्या थका मोदे। गया, निर्वृत्ति पाम्या यावत् सर्व दुःखश्री मुक्त थया.
पुरुषप्रधान थन् श्री पार्श्वनाथ प्रजुने निर्वाण पाम्याने वारसो वर्ष थइ गयां ने तेरसोमां सैकानुं था त्रीशमं वर्ष जाय ते. तेमां श्री पार्श्वनाथ प्रजुना निर्वाणथी श्रढीसो वर्षे
श्री वीर
For Private & Personal Use Only
सुबो०
॥ ए६ ॥
www.jainelibrary.org