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के हे बांधव ! शहीं तुरत पृथ्वी पर बालाटवा थादिक युक थापन कर तता अनुा. बार माटे बलनी परीक्षा करवा माटे एक बीजानी जुजा वालवानुं युद्ध करो, केमके वी तो ॐ
घटित नथी. बनेए ते वात कबुल करी. पठी कृष्णे पोतानो हाथ आगल धर्यो, त्यारे प्रजुए तो तेने नेतरनी लतानी पेठे अथवा कमलना नालनी पेठे तुरत लीला मात्रमा वाली नाख्यो. पली ४प्रजुए पोतानो हाथ लंबाव्यो, त्यारे कृष्ण तो वृदनी शाखा जेवा प्रजुना हाथने विषे वांदरानी पेते हैलटकवा लाग्या, तेथी उत्पन्न थता खेदने लीधे बमणुं कार्बु थयु ले मुख जेनुं एवा हरिए पोतानुं नामक IRI(हरिएटले वांदरो) यथार्थ कर्य. पडी कृष्णे बढ़ बल वापयुं, तोपण प्रजुनो हाथ वढ्यो नहीं. त्यारे।४
विषाद पाम्युं के चित्त जेनुं एवा कृष्ण श्रा नेमिकुमार सुखेथी मारुं राज्य ले लेशे, एम चिंतातुर थया थका पोताना मनमा विचारवा लाग्या के स्थूलबुद्धिवाला ( मूर्ख ) केवल क्लेशना लागी थाय ने अने फल बुद्धिमान् मेलवे ने, जुन, शंकरे समुन मथन को अने रत्नो देवोने मदयां । है अथवा स्थूलबुझिवाला केवल क्लेशना जागी थाय ने अने फल बुद्धिमान् मेलवे बे, जुङ, दांत
मुश्केलीथी चूर्ण करे ने अने जिह्वा क्षणवारमा गली जाय . | पनी तो श्री कृष्ण बलननी साथे विचार करवा लाग्या के "हवे श्रापणे शुं करवू ? राज्यनी
छावाला नेमिकुमार तो बलवान् बे.” एम ते विचार करे ने एटलामां श्राकाशवाणी थर के हे हरे ! प्रवेनमिनाथ प्रजुए कहेलं ते के बावीशमा तीर्थकर नेमि नामे कुमार थकाज दीक्षा लेशे. ते सांजलीने श्री कृष्ण निश्चिंत थया, तोपण निश्चय माटे नेमिनाथ प्रजुनी साथे जलक्रीमा करवा माटे ते पोतानी राणी सहित तलावमां गया, अने त्यां प्रेमथी नेमिकुमारने हाथे कालीने कृष्ण तुरत तलावमा दाखल थया. पनी त्यां तेणे नेमिनाथ प्रजुने केसरना रंगवालां सुवर्णनी पिचकारीमा
जरेला पाणीथी सिंच्या. तथा रुक्मिणी आदि गोपीउने पण श्रीकृष्णे कही राख्यु हतुं के था नेमिहै कुमारने निःशंकपणे क्रीमाए करीने विवाह करवानी श्छावाला करवा. त्यारपड़ी ते गोपीमांधी
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