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४/तापना वडे श्रातापना खेतां थका,जलरहित बहनो तप होते बते, तथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रने विषेश चंडनो योग प्राप्त थये बते, ध्यानना मध्य नागमां वर्त्तते उते, अर्थात् शुक्ल ध्यानना चार नेदो ,पहेलु पृथक्त्ववितर्कवालु सविचार, वीजें एकत्व वितर्कवालुं अविचार, त्रीजुं सूक्ष्म क्रिय अप्रतिपाति तथा चोधुं नछिन्नक्रिय अनिवर्ति; तेोमांधी पहेला बे नेदोवालुं ध्यान धरत बते, अनंत एटले अनंत
वस्तुनुं जाणपणुं ने जेमां एवां, अनुपम, वाधा रहित, श्रावरण रहित,संपूर्ण तथा सर्व अवयवे युक्त ४/एवां केवलज्ञान अने केवलदर्शन उत्पन्न थयां. । एवी रीते केवलझान उपन्या बाद श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजु "अर्हन् ” थया, अर्थात् अशोक वृक्ष आदिक प्रातिहार्यथी पूजाने योग्य थया. वली केवा ? तो के जिन कहेतां रागद्वेषने जीतनारा थया, तथा केवली, सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी थया. तथा देव, मनुष्य अने असुर सहित लोकना पर्यायोने जाणनारा तथा जोनारा थया. त्यारे शुं फक्त देव, मनुष्य अने असुरोनाज पर्यायोने जाणनारा थया ? तो के एम नहीं, सर्व लोकने विषे रहेला सर्व जीवोनी नवांतरथी , थागति, नवांतरमांगति, स्थिति एटले तन्नव संबंधी आयुष्य अथवा कायस्थिति, च्यवन एटले देवलोकथी तिर्यंच अने मनुष्यने विषे अवतार, उपपात एटले देवलोकमां अथवा नरकमां उत्पत्ति, तथा सर्व जीव संबंधी (जीवोनां) मन, मनमां चिंतन करे, नोजन फलादि, चोरी श्रादिक कार्य, मैथुन आदि प्रतिसेववं, प्रगट कार्य तथा गर्नु कार्य, ते सघलु सर्व जीवोनुं जगवान् जाणनारा थया.वली ते प्रनु केवा ? तो के त्रणे जुवनने करामलकनी पेठे जोनार होवाथी नथी रहेल कंपण गुप्त जेने एवा, तथा जघन्यपणाथी क्रोम देवो तेमनी सेवा करनारा होवाथी एकांतने नहीं नजनारा एवा ते प्रजु ते ते कालने विपे मन, वचन अने कायाना योगोमा यथायोग्यपणे वर्तता एवा सर्व लोकने विषे सर्व जीवो, तेना सर्व नावोने जाणता अने जोता थका विचरवा लाग्या. वली "सबजी
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