SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इत्यादि ऋण राशि स्थापी, त्यारपढी तेनी विद्याउने पोतानी विद्या वडे जीत्ये बते तेणे मूकेली रासजी विद्याने रजोहरणथी जीतीने महोत्सवपूर्वक गुरु पासे श्रावी सर्व वृत्तांत कह्यो. त्यारे गुरुए कयुं के " हे वत्स ! तें तेने जीत्यो ते सारुं कयुं, पण जीव, जीव ने नोजीव ए त्रण राशिनी स्थापना करी ते उत्सूत्र बे तेथी त्यां जश्ने मिथ्या दुष्कृत थाप." पढी "तेवी रीते सजामां पोतेज प्ररूपीने तेने केवी रीते हुं अप्रमाण करूं ?" ए प्रमाणे तेने अहंकार उत्पन्न थवाथी तेणे ते प्रमाणे न कर्यु पछी गुरुए व मास सुधी राजसनामां तेनी साथे वाद करीने बेवढे कुत्रिकापथी नोजीवनी मागणी करी. त्यां ते नहीं मलवाथी चुमालीशसो प्रश्न वडे तेने परास्त कर्यो. ते बतां पण कोइ रीते पोतानो आग्रह न बोमवाथी गुरुए क्रोधथी थुकवाना पात्रमांथी तेना | मस्तक पर जस्म नाखवापूर्वक तेने संघ बहार कर्यो. त्यारपठी ते त्रैराशिक बघा निहवे अनुक्रमे | वैशेषिक दर्शन प्रकट कर. जो के सूत्रमां रोदगुप्त ने श्रार्यमहागिरिनो शिष्य कहेल बे, परंतु उत्त| राध्ययन वृत्ति ने स्थानांगवृत्ति विगेरेमां श्री गुप्ताचार्यनो शिष्य कहेल होवाथी श्रमोए पण ते प्रमाणेज लखेल बे. तेमां तत्त्व शुं बे ते बहुश्रुतो जाणे. स्थविर उत्तरवलिरसह थी उत्तरबलिस्सद नामनो गए नीकल्यो बे. तेनी चार शाखा श्रा प्रमाणे कहेवाय . कौशांबिका १, सौरितिका २, कौटुंबीनी ३, चंदनागरी ४. वासिष्ट गोत्रवाला | स्थविर श्रार्यसुदस्तीने बार स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. ते या प्रमाणे- स्थविर आर्यरोहण १, जयश २, मेघ ३, कामर्द्धि ४, सुस्थित ए, सुप्रतिबुद्ध ६, रक्षित ७, रोदगुप्त छ, रुषिगुप्त ए, श्रीगुप्त १०, बह्मा ११ ने सोम १२. ए प्रमाणे सुहस्तीना गहने धारण करनारा था बार | शिष्यो हता. काश्यप गोत्रवाला स्थविर श्रार्यरोहणथी उद्देह गए नामनो गए नीकल्यो. तेमांथी १ कृत्रिक एटले लोक, तेमांनी तमाम वस्तु मले एवी आपण एटले दुकान ते कृत्रिकापण. या राजगृहीमां | देवाधिष्ठित दुकान हती. त्यां नोजीव न मध्यो. เจ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy