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सुबोग
कल्प
प्रमाणे-एलापत्य गोत्रवाला स्थविर श्रार्यमहागिरि १ अने वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर आर्यसुह
वास्ति . एलापत्य गोत्रवाला स्थविर आर्यमहागिरिने आठ स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. ॥१०॥
दाते या प्रमाणे-स्थविर उत्तर १, स्थविर बलिस्सहर, स्थविर धनाढ्य ३, स्थविर श्रीन, स्थविरल है कोमिन्य ५, स्थविर नाग ६, स्थविर नागमित्र ७ अने कौशिक गोत्रवाला स्थविर षमुलूक रोहगुप्त , 1. अव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष अने समवाय ए ड पदार्थने प्ररूपवाथी षडू अने उलूक ||गोत्रमा उत्पन्न थवाथी उलूक, ए षड् अने उलूकनो कर्मधारय समास करवाथी षमुलूक. तेनो ४ हूँ प्राकृत प्रयोग बडुलूए थाय ने तेथी सूत्रमा तेमने कौशिक गोत्री कहेल . उलूक अने कौशिक हैए बने शब्दनो अर्थ एकज होवाथी कहेल के. कौशिक गोत्रवाला स्थविर बडुलूक रोहगुप्तथी/
राशिक नीकल्या. जीव, अजीव अने नोजीव नामे त्रण राशिने प्ररूपनारा तेना शिष्य, प्रशिष्य ते त्रैराशिक कहेवाय बे. तेनी उत्पत्ति श्रा प्रमाणे -श्री वीर प्रजुना निर्वाण पनी पांचसो चुमालीशमे वर्षे अंतरंजिका नामे नगरीमां नूतग्रह जेवा व्यंतरना चैत्यमा रहेला श्रीगुप्त ६ थाचार्यने वांदवा माटे बीजा गामथी श्रावता तेनारोहगुप्त नामना शिष्ये वादीए वगमावेला पटहनो है। ध्वनि सांजलीने ते पटहने स्पर्श कर्यो अने श्राचार्यने ते वात निवेदन करी. पली वीडी, सर्प, || बंदर, मृगी, वराही, काकी श्रने शकुनिका ए नामनी परिव्राजकनी विद्याऊने उपघात करनारी मयूरी, नकुली, बिमाली, व्याघ्री, सिंही, उलूकी अने श्येनी ए नामनी सात विद्या तथा सर्व 8 उपवने शमावनार रजोहरण गुरु पासेथी मेलवीने बलश्री नामे राजानी सनामां श्रावी पोहशाल नामना परिव्राजकनी साथे वाद करवा मांड्यो. ते परिव्राजके जीव अजीव, सुख दुःख यादि बे राशिनुं स्थापन कयें. त्यारे त्रण देव, त्रण अग्नि, त्रण शक्ति, त्रण स्वर, त्रण लोक, त्रण पद, त्रण ॥२॥ पुष्कर, त्रण ब्रह्म, त्रण वर्ण, त्रण गुण, त्रण पुरुष, संध्या श्रादित्रण काल, त्रण जातनी संध्या, त्रण वचन अने वली त्रण अर्थ कहेल ने, ए प्रमाणे कहेता रोहगुप्ते जीव, अजीव श्रने नोजीव
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