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________________ ते. तथा श्रापमुं अंतरिक्ष कहेतां ग्रहोना उदय अथवा अस्त श्रादिक थवाश्री जे सारा माग बनावो बने तेनुं जे विज्ञान यq ते. | एवीरीते सिझार्थ राजाए करेल ने हुकम जेठने एवा ते कौटुंबिक लोको हर्ष पामेला,संतोष पामेला, है यावत् हर्षथी पूर्ण हृदयवाला थया थका राजानी ते श्राझाने हाथ जोमीने सांजलवा लाग्या, अने सां नलीने सिद्धार्थ क्षत्रियनी पासेथी बहार जाय , अने बहार जश्ने दत्रियकुंमग्राम नगरना मध्य ना-2 गमां थश्ने ज्यां स्वप्नपाठकोनां घर जे त्यां जाय बे अने जश्ने तेने बोलावे. पड़ी ते स्वप्नपाको पण सिद्धार्थ राजाना कौटुंबिकोने बोलाववा आवेला जाणीने अत्यंत हर्षित थया;तथा पठी तेए स्नान क-15 यु, त्यार बाद तेए बलिकर्म कहेतां पूजा करी.वली ते स्वप्नपाठको केवा तो के करेलां तिलक श्रादिक जेए एवा. वली ते स्वप्नपाठको केवा तोके दधि कहेतां दही, दूर्वा कहेतां ध्रो तथा अक्षत कहेतां चोखा है श्रादिकथी करेलुं मंगल जेए एवा.ते मंगलोशाने माटे तो के पुःस्वप्न कहेतां खराब एवां जे स्वप्न श्रादिक तेनो नाश करवा माटे. वली ते स्वप्नपाठको केवा तो के शुद्ध एटले पवित्र अने उज्ज्वल एवां 3 तथा प्रवेश्य कहेतां राजानी सन्नामां जेवां कपमा पहेरीने जवाय एवां तथा मंगलसूचक पहेरेलां | श्रेष्ठ कपमा जेणे एवा. वली ते स्वप्नपाको केवा तो के अस्प कहेतां थोमां अने महार्घ कहेतां मोटी किमतनां जे श्रानूषणो, तेए करीने अलंकृत कहेतां शोनावेबुंदे शरीर जेए एवा. वली ते स्वप्नपा-2 को केवा तो के सिद्धार्थ कहेता जे सफेद रंगना सरसवो तथा हरितालिका एटले जे पूर्वी ते बन्ने । वस्तुऊने जेए मंगल कहेतां कल्याणने माटे धारण करेली मस्तकमां जेए एवा. एवीरीतना थश्ने तेसघला पोतपोताने घेरथीनीकल्या. एवीरीते पोतानां घरोमांथी नीकल्या बाद ते ते क्षत्रियकुंमग्रामनीमध्यमां थश्ने, ज्यां सिद्धार्थ राजा, नुवनवर कहेतां उत्तम मेहेलो तेने विषे पण है श्रवतंसक कहेतां मुकुट सरखं एवं जे नुवन , तेना प्रतिकार कहेतां मूल दरवाजा पासे ते श्राव्या. त्यां श्राव्या बाद ते सघला एका थश्ने, एक सरखा मतवाला थया, अने तेजेए Jain Education initiational For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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