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कल्प
॥५६॥
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कोलाहलथी सघलुं ब्रह्मांग गाजी रघु. तेोमांथी सिंह पर स्वार थयेलो देव हाथी पर स्वार | सुबोण थयेला देवने कहेवा लाग्यो के तारा हाथीने तुं पूर कर, केमके नहींतर मारो था जोरावर के-15 सरी सिंह खरेखर तारा हाथीने मारी नाखशे. तथा एवीज रीते पामा पर बेठेलो घोडे स्वारने, गरुम पर बेठेलो सर्पवालाने तथा चित्रा पर बेठेलोबकरा पर बेठेलाने आदरपूर्वक कहेवा लाग्यो.2
ते वखते देवोनां क्रोमो गमे विमानो श्रादिक वाहनोए करीने विस्तीर्ण एवो पण आकाशमार्ग ६सांकमो थर गयो. केटलाक देवो तो मित्रने पण तजीने दक्षपणाए करी अगाडी जता हवा. है तथा बीजो देव वली कोश्ने एम कहेतो हवो के हे ना! तुं जरा मारे माटे थोमी वार तो है
योन. केटलाक तो वली एम कहेवा लाग्या के हे देवो! पर्वना दिवसो तो एवी रीते सांकमाज, होय , माटे हमणां तो मौन करीनेज चालो. एवीरीते श्राकाशमां श्रावता थका देवोनां मस्तको पर चंदनां किरणो पमवाथी ते "निर्जर" बता पण जाणे जरायुक्त थयेला होय तेम शोजता | हवा. ( केमके तेमनां मस्तको चंजनां किरणोथी सफेद लागतां हता.) देवोनां मस्तक पर रहेला हूँ तारा घटिका सरखा, कंठमां कंगा सरखा तथा शरीर पर पसीनानां विंधन सरखा शोजता हता. एवी रीते इंज नंदीश्वर छीप पासे विमानने संदेपीने त्यां व्यो, तथा जिने थने तेमनी मा-2 ताने तेणे त्रण प्रदक्षिणा करी, तथा तेमने नमस्कार करी ते कहेवा लाग्यो के हे रत्नकुक्षि! तथा ६ जगत्मां दीपिका सरखी माता! तमारा प्रत्ये नमस्कार था. ढुं देवोनो स्वामी इंछ लु, तथा देवहै लोकथी अहीं आव्यो डं, तथा श्रा प्रजुनो हुँ जन्ममहोत्सव करीश. माटे हे माता ! तमारे मरद्द नहीं, एम कही तेणीने अवस्वापिनी निमा तेणे श्रापी; तथा जिनेश्वर प्रजनुं प्रतिबिंब करीने ते मातानी पासे राख्यु. पनी तीर्थकर प्रजुने तेणे हस्तसंपुटमां ग्रहण कर्या, तथा सघलो लावो पोते ॥५ ॥ सेवा माटे तेणे (इंजे) पोतानां पांच रूपो काँ. एक रूपे करी प्रजुने ग्रहण कर्या, बे रूपोए क. रीने परखे रही चामर उमाड्यां, एक रूपे करी त्र धर्यु, तथा एक रूपे करीने वज़ धारण कयु.*
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