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कल्प | चोमासु रहेल साधु जो बीजी को विगय खावाने श्वे तो आचार्य यावत् जेने गुरुपणाए कबुल 8
सुबोध 18 करीने विचरे तेने पूज्या सिवाय ( विगय खावी ) कल्पे नहीं. श्राचार्य यावत् जेने गुरुपणाए ॥१३६॥ करीने विचरे ने तेने पूढीने (विगय खावी) कल्पे बे. केवी रीते पूल ते कहे जे-'हे पूज्य ! आपनी
आज्ञा होय तो अनेरी विगय आटला प्रमाणमां अने थाटला वखत खावाने श्ळ बु. ते श्राचार्य | आदि जो तेने आझा आपे तो तेने अनेरी विगय खावी कल्पे . ते श्राचार्य आदि जो तेने आज्ञा न आपे तो अनेरी विगय खावी कल्पे नहीं. 'हे पूज्य! ते शामाटे ?' एम शिष्ये प्रश्न कर्याथी गुरु |
कहे के प्राचार्यो लाजालान जाणे . ४. है चोमासु रहेल साधु वात, पित्त, श्लेष्म अने सन्निपात संबंधी रोगोनी को प्रकारनी चिकित्सा कराववाने श्छे तो (आचार्य इत्यादिने पूजीने करवी विगेरे ) अगाउ जणाव्या मुजब सर्व अहीं । कहे. ते चिकित्सा आतुर, वैद्य, प्रतिचारक अने जैषज्यरूप चार प्रकारनी जे. कयु डे के निषक् । (वैद्य ), अव्यो, उपस्थाता (नोकर) अने रोगी ए चार प्रकार चिकित्सितना जे.' ते प्रत्येकना चार 8 |चार प्रकार कह्या . दक्ष, शास्त्रना अर्थ जाएया बे एवो,, दृष्टकर्मा अने शुचि ए चार प्रकार निषक्ना बे. बहुकल्प, बहुगुण, संपन्न श्रने योग्य ए चार प्रकार औषधना बे. अनुरक्त, शुचि, दद अने। बुद्धिमान् ए चार प्रकार प्रतिचारकना ले तथा आढ्य (धनवान), रोगी, निषक्ने वश अने झायक एटले सत्त्ववान् ए चार प्रकार रोगीना जे.ए. 4 चोमासुं रहेल साधु जो कोई प्रशस्त, कल्याणकारी, उपवने हरनार, धन्य करवावाचु, मंगल है करनार, शोजा आपनारं अने महा प्रजाववायूँ एवी जातर्नु कोश् तपाकर्म अंगीकार करीने ।
विचरवाने श्छे तो गुरुने पूबीने विचरवु (कर) कल्पे इत्यादि अगाउनी माफक सर्व कहेवु. ५०. | ॥१३६॥ __ चोमासु रहेल साधु जे श्वे, ते केवा साधु ? तो के अपश्चिम एटले चरम (बेधुं) मरण ते अपश्चिम मरण, पण प्रतिक्षणे आयुष्यना दलिक अनुजववारूप आवीच मरण नहीं. अपश्चिम मरण है।
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