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देतां गायनुं दूध, फीण, पाणीना कणीच्या, तथा रजतकलश कहेतां रूपानो कलश, तेना सरखा सफेद रंगवालो. वली ते चंद्र केवो तो तो के शुभ एटले शांतता थापना एवो. वली ते चंद्र केवो हतो, तो के था दुनियामां रहेता जे लोको, तेज॑नां हृदय एटले मन, अने नयन कतां खोने, कांत कदेतां वल्लज लागे एवो. वली ते चंद्र केवो हतो तो के संपूर्ण बे मंडल जेनुं एवो. वली ते चंद्र केवो इतो तो के तिमिर कतां अंधकारोनो जे समूह तेणे करीने निविक छाने गंजीर एवां जे वननां गह्वरो कदेतां कामीथी जरपूर एवा वनना जागो, ते मां अंधकारनो अजाव करनारो, अर्थात् कामी मां रहेला अंधकारनो पण नाश करनारो. कर्तुं बे के:
विरम तिमिर साहसादमुष्मा - यदि रविरस्तमितः स्वतस्ततः किम् ॥ कलयसि न पुरो महोमहोर्मि- स्फुटतर कैरवितांतरिक्षमिडुम् ॥ १ ॥
अर्थ- हे अंधकार, या तारा साहसथी तुं अटकी जा ( एटले विराम पाम ), कारण के सूर्यना श्राथम्या पढ़ी, तेजनां मोटां मोजांए करीने, प्रफुल्लित थयेला चंद्र विकासी कैरव सरखं करेल बे व्याकाश जेणे, अथवा कांतिवालां किरणोए करीने रक्षण करेलुं बे प्रकाशनुं जेणे एवा था चंद्रने शुं, तुं अगामी जोतो नथी ?
वली ते चंद्र केवो तो के वर्ष ने मास श्रादिकना प्रमाणने करनारा, शुक्ला ने कृष्ण एवा जे वे पक्षो, | तेनी मध्यमा रहेली जे पूर्णिमा, तेने विषे राजती कदेतां शोजती बे, लेखा कहेतां कला जेनी एवो. वली ते चंद्र केवो बे तो के कुमुद कहेतां चंद्र विकासी जे कमलो, तेउने विकवर करनारो. कह्युं बे केःदिनकरतापव्याप- प्रपन्नमूर्छा नि कुमुदगहनानि ॥ उत्तस्थुरमृतदीधिति - कांतिसुधासे कतस्त्वरितं ॥ १ ॥
अर्थ- दिनकर कहेतां सूर्यना तापनी जे व्याप्ति कहेतां फेला, तेथी प्राप्त थपली बे मूर्छा जेने, अर्थात् करमाइ गएलां, एवां जे कुमुदगहनानि कतां चंद्र विकासी कमलोनां जे वनो, ते, अमृतदीधिति कहेतां चंद्रनी जे कांति, तेरूपी जे श्रमृत, तेना सिंचावाथी; अर्थात् तेना
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