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कल्प वर्ष व्यतीत थये बते सिद्धांत पुस्तकारूढ थयां त्यारे कल्पसूत्र पण पुस्तकारूढ थयु.' तेमज कयु के
श्री वीर नगवानथी नवसे एंशी वर्षे वहनीपुर नगरने विषे देवर्षिगणि प्रमुख सकल संघे पुस्त॥ए३॥ 15 कमां श्रागम लख्यां.' वीजा कहे जे के 'नवसे एंशी वर्षे श्रानंदपुरमा वीरसेन नामना पुत्रने अर्थे 21
संघ समक्ष महोत्सवपूर्वक पंमितोए वांचवानुं शरु कयु.' इत्यादि अंतर्वाच्यना वचनथी श्री वीर निर्वा-[3]
थी नवसें एंशी वर्ष व्यतीत थये बते सजा समद कल्पसूत्रनी वाचना थर ते जणाववाने माटे || श्रा सूत्र मूक्युं बे, पण तत्त्व तो केवली जाणे. वाचनांतरमा आ नवसे त्राणुंमुं वर्ष जाय जे एम है। देखाय जे. अहीं केटलाक कहे के 'वाचनान्तरे तेनो शुं अर्थ ? तो के बीजी प्रतमां तेणनए'। एटले त्राणुं देखाय , तेथी कल्पसूत्रनुं पुस्तकमां लखावु अथवा पर्षदामां वंचावु ए नवसें एंशी वर्ष व्यतीत श्रये उते थयु एम को पुस्तकमां लखेल ,तेम बीजा पुस्तकमां नवसें त्राणुं वर्ष व्यतीत थये आते हैं। थियुं एम देखाय बे, ए प्रमाणे नाव जाणवो. बीजा वली कहेले के 'अयं अशीतितमे संवत्सरे तेनो अर्थ शुं ने ? तो के पुस्तकमां कल्पसूत्र लखावाना हेतुनूत श्रीवीरथी दशमा सेंकमाना एंशीमा है। वर्षरूप श्रा काल जाय . 'वायणंतरे' एनो शुं अर्थ ? तो के एक पुस्तक लखावारूप वाचनानु, वीजें सनामां वंचावारूप जे वाचनांतर, तेना हेतुनूत दशमा सेंकमार्नु ा त्राणुंमुं वर्ष जे. तेम वली था पण अर्थ थाय के नवसें एंशीमे वर्षे कल्पसूत्रनुं पुस्तकमां लखावु थयुं श्रने नवसें त्रामे वर्षे कल्पसूत्रनी पर्षदामां वाचना थ.तेज प्रमाणे श्री मुनिसुंदर सूरिए पोते बनावेला स्तोत्ररत्नकोशमां पण कहेलु के श्रीवीरथी एए३मे वर्षे चैत्यथी पवित्र एवाजे आनंदपुरमा ध्रुवसेन राजाए महोत्सवपूर्वक सनामां कल्प-18 सूत्रनी पहेली वाचना करी ते आनंदपुरनी स्तुति कोण नथी करतुं ? 'वबहीपुरं मि नयरे'इत्यादि वचनथी पुस्तक लखवानो काल तो उपर जेकह्यो ते प्रसिज,पण तत्त्व केवली जाणे. इति श्रीवीरचरित्रं. ६ ॥ ए३॥ ___एवी रीते महोपाध्याय श्री कीर्तिविजय गणिना शिष्योपाध्याय श्री विनय विजयजी गणिए रचेली कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टीकाना गुजराती जाषांतरमा बहो क्षण समाप्त थयो. श्रीरस्तु.
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