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________________ कल्प %ANARCORRECENGLISCCUSACADEM विषे को जिन थाय तेवो पुरुष डे ? जगवंते कडं, हे जरत, आ तारो पुत्र मरीचि आ चालती अवसर्पिणीमां वीर नामे चोवीशमा तीर्थकर, विदेह देवनी मूका राजधानीमा प्रिय मित्र नामे चक्रवर्ती अने थानरतक्षेत्रमा प्रथम वासुदेव थशे.श्रा सांजली दर्ष पामेला नरते मरीचि पासे जश्त्रण प्रददिणा अने वंदना करी कडं, हे मरीचि, जेटला लाल ने तेटला तेंज मेलव्या बे, कारण के तुं तीर्थकर, वासुदेव श्रने चक्रवर्ती थश्श. हुँ तारा था परिव्राजकपणाने वांदतो नथी, पण तुं तीर्थकर थश्श एम 4 है धारी तने वंदना करुं हुं. एम वारंवार स्तुति करी नरत पोताना स्थानमा गयो. मरीचिए पण ते सां. नली हर्षना थधिक्यथी त्रिपदी बनावी नृत्य करतां आ प्रमाणे कर्वा "पहेलो वासुदेव थश्श, मूकापुरीमा चक्रवर्ती थश्श श्रने नेहो तीर्थकर यश्श. अहो ! माझं कुल घणुं उत्तम . बधा वासुदेवोमां 5 हुँ पहेलो वासुदेव थश्श, मारा पिता जरत बधा चक्रवर्तीउँमा पहेला चक्रवर्ती ने अने मारा पिता-3 हूँ मह रुषजदेव सर्व तीर्थंकरोमां पहेला तीर्थंकर ने. अहो ! मारुं कुल केवु उत्तम !” श्रा प्रमाणे मद करवाथी मरीचिए नीच गोत्र बांध्यु. कडं ने के, "जे माणस जाति, लाल, कुल, ऐश्वर्य, बल, रूप, तप, अने विद्या ए सर्वर्नु अनिमान करे तो तेने पुनः ते बधां हीन मले जे." ते पनी ज्यारे जगवंत निर्वाण ४. पाम्या, एटले ते पूर्वनी जेम लोकोने प्रतिबोध करी साधुऊना शिष्य करी तेउनी साथे विहार करवा 5 लाग्यो. एकदा मरीचिना शरीरे व्याधि थयो पण कोश्तेनी वैयावच्च करतुं नहीं त्यारे तेणे चिंतव्युं के,श्र-5 हो,श्रा निग्रंथो घणा परिचित ने तथापि ते पारका ,तेथी जो हुँ नीरोगी था तो एक वैयावच्च करनारो। शिष्य करूं-श्राम विचायु. अनुक्रमे ते नीरोगी थयो. एक वखते कपिल नामनो कोश् राजपुत्र मरीचिनी । देशना सांजली प्रतिबोध पाम्यो एटले मरीचिए का, हे कपिल, तुं साधुउनी पासे जश् चारित्र ग्रहण दूधकर. त्यारे कपिले कयु, स्वामी, हूं तो तमारा दर्शन व्रत लश्श. त्यारे मरीचि बोल्यो, हे कपिल, ते साधु त्रण प्रकारना दंडश्री विरत ने अने हुँ तो त्रण दमवालो इत्यादि सर्व पोतानुं वरूप कही बताव्यु, तथापि ते नारेकर्मी कपिल चारित्रथी विमुख थश् बोध्यो, शुं तमारा दर्शनमां सर्वथा धर्म ॥१॥ Jain Educat or Private Personal serv Aaimjainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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