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________________ हैलोजन कर्या बाद ते साधुउने नमीने बोल्यो, महानाग, चालो, श्रापने मार्ग बतावं. पडी मार्गमा चालता साधए 'था योग्य ' एम धारी धर्मनो उपदेश थापी तेने समकितनी प्राप्ति करावी. अंतकाले नवकार स्मरण करतां मृत्यु पामी ते बीजे नवे सौधर्म देवलोकमां पख्योपम आयुष्यवालो देवता थयो. त्यांश्री चवीने त्रीजे नवे मरीचि नामे जरत चक्रवर्तीनो पुत्र थयो. वैराग्य प्राप्त करी श्री षनदेव प्रजुनी पासे तेणे दीक्षा लीधी अने स्थविर पासे एकादशांगीन अध्ययन कयु. एक वखते ते ग्रीष्मऋतुमां तापादिकनी पीमा पामी चितवन करवा लाग्यो के, "श्रा संयमनो , नार श्रति वहन करवो मुश्केल , ते माराथी निर्वाह करी शकाशे नहीं अने हवे श्रा वेष बोमी । घेर चाल्या जq ते सर्वथा अनुचित ने" था, विचारी तेणे एक अभिनव वेष धारण कों. ते श्रा प्रमाणे-श्रा साधु मन, वचन अने कायाना त्रण दमथी विरत ने अने हुं तेवो नथी तो मारे त्रण दमनुं चिह्न हो. था साधुः अव्य अने नावथी मुंमित बे, हुं तेवो नथी तेथी मारा & मस्तक उपर शिखा थने कुर मुंगन हो. सर्व श्रमणोने प्राणातिपातथी विरति डे परंतु मारे तो स्थूल हिंसाथ। विरति हो. साधु शीलवतथी सुगंधी ने अने हुं तेवो नथी तेथी मारे तो चंद नादिकनुं विलेपन हो. मुनि मोह वगरना बे श्रने हुँ तो मोहथी श्राबादित बुं, तेथी मारे बत्रीवेंद्र आछादन हो. मुनिना चरण उपान वगरना जे पण मारा बे चरणमा उपान हो. श्रमण-मुनि कषाय रहित ने अने ढुंकषाय सहित बुं, तेथी मारे कषाय वस्त्र हो. मुनि नानथी विरत ले परंतु मारे तोपरि-|| |मित (मापवाला) जलथी स्नान तेमज पान हो. एवी रीते खबुद्धिथी परिव्राजकनो वेष कल्पी लीधो. 81 ४|| पनी विरूप वेषवाला तेने जोर सर्व लोको तेने धर्म पूबवा लाग्या, त्यारे तेउनी आगल साधुधर्मनी प्र-31 रूपणा करवा लाग्यो. देशनाशक्तिथी अनेक राजपुत्रोने प्रतिबोध पमाडी नगवंतने शिष्यपणे वर्त्तवा लाग्यो, अने नगवंतनी साथेज विहार करवा लाग्यो. एक वखते जगवंत अयोध्यामां समोसर्या, त्यां । वंदना करवाने आवेला जरते प्रजुने पूज्यु के, खामी, या पर्षदामां था चोविशीनी अंदर जरतक्षेत्रने SamEducation international For Private Personal Use Only wave.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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