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________________ कल्प० ॥ २० ॥ Jain Educatio पुत्रो थने घाव जरतना पुत्र एक समये सिद्धिने पाम्या - ए नवमं श्राश्चर्य बे. ए असंयत एटले संयम | वगरना जे प्रारंभ परिग्रहमां यासक्त वे तेवानी पूजा. जे संयत-संयमवाला ने ते तो सर्वदा पूजाय, पण श्रावसर्पिणी मां एटले नवमा श्रने दशमा जिननी अंतरे असंयत एवा पण ब्राह्मणादिकनी पूजा प्रवर्त्ती ए दशमं श्राश्चर्य. १० या दश आश्चर्यो अनंतकाल गया पढी था अवसर्पिणीमां थयेलां बे. | एवी रीते कालनी समानताथी बाकीना चार जरतमां ने पांच ऐरवतमां एम प्रकारांतरे दश दश श्राश्चर्यो जाणवां. हवे ते दश श्राश्रर्यो कोना कोना तीर्थमां थयां ते स्पष्ट करे ठे-एकसो ने आठ सि | किए गया ए आश्चर्य श्रीरुषनदेवना तीर्थमां थयुं दतुं हरिवंशनी उत्पत्तिनुं आश्चर्य शीतलनाथना तीर्थमां ययुं हतुं. परकंका राजधानीमां जवानुं श्राश्चर्य श्री नेमिनाथना तीर्थमां थयुं हतुं. स्त्री तीकर थवानुं श्राश्वर्य श्रीमल्लिनाथना तीर्थमां घयुं दतुं श्रसंयत-ब्राह्मणादिकनी पूजानुं आश्चर्य श्रीसुविधिनाथना तीर्थमां ययुं हतुं. बाकीनां उपसर्ग, गर्जनुं हरण, श्रावित पर्षदा, चमरनुं ऊर्ध्व गमन ने सूर्य चंद्रनुं अवतरण - ए पांच श्राश्वर्य श्री वीरतीर्थमां थयां बे. ए दश श्राश्चर्य समाप्त थयां. दवे एक आश्चर्य बीजुं ययुं. श्रा श्राश्चर्य के जे नामगोत्र एटले नाम वडे गोत्र अर्थात् जे गोत्र नामनुं कर्म बे ते. वली ते केवुं ठे के जे अक्षीण एटले स्थितिना श्रयथी रहेलुं बे, वली ते रसना परिजोगयी अज्ञात बे, वली निर्जीर्ण श्रटले जीवना प्रदेशथी नहीं सडेलुं एवं बे, एवा गोत्र अर्थात् नीच गोत्रना उदयश्री जगवान् महावीर ब्राह्मणीनी कुद्दिमां उत्पन्न थया. नीच गोत्र जगवंते सत्यावीश स्थूल जवनी अपेक्षाए त्रीजा जवमां बांध्युं हतुं, ते या प्रमाणे वृत्तांत बे. पदेला जवमां पश्चिम महाविदेह क्षेत्रमां नयसार नामे एक ग्रामपति हतो. एक वखते ते काष्ठ लेवाने वनमां गयो. मध्याह्नकाल यतां ते वनमां जोजनसमये सार्थथी जुदा थयेला साधु तेना जोवामां श्राव्या. तेमने जो ते हर्ष पामी चिंतवन करवा लाग्यो, अहो ! मारां मोटां जाग्य ! आ स | मये अतिथिनो समागम थयो. पढी घणा हर्षथी ते साधुर्जने शन पानादिकथी प्रतिलाच्या पाठी For Private & Personal Use Only सुबो० ॥ २० ॥ www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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