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________________ कल्प० ॥ १७ ॥ एवा श्रर्थात् धर्मना नायक एवा, समुद्रमां डुबता एवा प्राणीउने द्वीप जेवा एटले संसारसागरमां आधाररूप एवा, वली ताप एटले अनर्थनो नाश करवाना देतुरूप एवा, वली कर्मना उपद्रवथी जय पामेला प्राणीउने शरणरूप एवा, गतिरूप एवा, स्वस्थताने माटे जेने दुःखी माणसो श्राश्रित थाय ते गति कद्देवाय वली श्रा संसाररूपी कूवामां पकता एवा प्राणीउने अवलंबन रूप एवा, मूलमां दीवो ताणं इत्यादि पद प्रथमांत बे ते बतां पण ते चतुर्थीना श्रर्थमां बद्धी विनक्ति बेडे होय तेम व्याख्या करवी. वली जे अप्रतिहत एटले बादमी के जींत विगेरेथी अस्खलित एवा उत्तम प्रधान ज्ञान दर्शनने धारण करनारा वली बद्म एटले घातिकर्म जेनाथी निवृत्त थयां बे एवा, वली राग द्वेषने जीतनारा बे. वली ते उपदेश दान विगेरे आपी जव्य प्राणीउने जीवाडनारा बे. या संसारसमुद्रने तरेला बे ने सेवको तारनारा बे. वली ते तत्त्वना बोधवाला बे छाजे बीजाउने तखना बोधक बे. पोते कर्मना पांजरामां| श्री मुक्त बे ने सेवकोने मूकावनारा बे. वली पोते सर्वज्ञ तथा सर्व वस्तुने जोनारा दें. तेमज उपअव रहित, अचल, रोगरहित, अनंत वस्तुविषयनुं ज्ञानस्वरूप, श्रादि अंत रहितपणाथी कयरहित एवं, तेमां अंत एटले सर्वथी नाश छाने दय देशथी नाश तेणे रहित एवं, वली बाधारहित, तथा पुनरावृत्ति, पुनरागमन तेणे रहित एवं सिद्धिगति नामनुं स्थान बे, ते स्थानने प्राप्त थयेला, जयने जीतनारा श्रीजिन जगवंतने नमस्कार बे. आवी रीते सर्व जिनोने नमस्कार करी शक्र इंद्र श्रीवीर प्रभुने नमस्कार करे बे. श्रम जगवंत श्रीमहावीर प्रभु के जे पूर्वना तीर्थंकरोए कहेला अने सिद्धिगति नामना स्थान प्रत्ये जवानी इछावाला बे, तेमने नमस्कार हो. श्रीवीर प्रभु हवे मुक्तिए जवाना बे तेथी या विशेषण याप्युं छे. या सर्व विशेषणो बडीना एक वचनांत बे ते बतां पण ते चतुर्थीना श्रर्थमां लेवां. इंद्र कहे बे, ते देवानंदा ब्राह्मणीनी कुक्षिमां रहेला ते वीर प्रजुने हुं वंदना करुं हुं हुं यहीं रह्यो बुं अने प्रभु ते कुक्षिमां रह्या बे. ते मने यहीं रहेलाने जुवे एम धारी इंद्र ते प्रजुने वंदना करे बे ने नमस्कार करे बे. For Private & Personal Use Only Jain Education International सुबो० ॥ १७ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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