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________________ SANCHALISASEAS थति शीतल श्रादिक थाहारथी गर्जने पोषवो नहीं. वली केवां जोजन, श्राबादन, गंध तथा माव्यथी गर्जने पोषवो ते कहे . सघली ऋतुमां जोजन करातां अने जे सुखना हेतु होय , अनेक गुणोने करवावाला होय तेवा. तेनुं हवे वर्णन करे ने. वर्षा ऋतुमां लवण खावं ते अमृत तुल्य बे, शरद् ऋतुमां पाणी अमृत सर ने, हेमंत ऋतुमां गायतुं दूध अमृत तुल्य , शिशिर - है तुमा खाटुं नोजन अमृत तुल्य , वसंतमां घीनुं जोजन अमृत सरखं , तथा लेखी शतुमा गो-है लनुं जोजन अमृत सरखं . हवे ते त्रिशला क्षत्रियाणी केवी डे ? ते कहे . रोग एटले ज्वर श्रादिक, शोक एटले इष्टना वियोग श्रादिकथी उत्पन्न थती दिलगिरी, मोह एटले मूर्ग, जय ६ एटले बीक, परिश्रम एटले कसरत इत्यादिक घरगयां ले जेणीनां एवी, अर्थात् रोग आदिकथी रहित थएली, कारण के ते सघलां गर्जने अहित करनारां . सुश्रुत नामना वैद्यक ग्रंथमां पण कडं ले के गर्नवती स्त्री जो दिवसे उंघे तो गर्न पण उघणसी थाय, अंजन करवायी गर्न आं- धलो थाय, रोवाथी विकारवाली आंखोवालो थाय, स्नान अने लेपनथी उःशील थाय, तैलना मर्दनथी कुष्टरोगवालो थाय, नख कातरवाथी खराब नखवालो थाय, दोमवाथी चंचल थाय, 1 हसवाथी काला दांतवालो, काला होग्वालो, काला तालवावालो, तथा काली जीजवालो थाय, है बहु बोलवाथी बकबकीयो थाय, अति शब्दो सांजलवाथी बहेरो थाय, अवलेखनथी खलति थाय, वीऊणो श्रादिक हलाववाथी ( पवन देवाथी) उन्मत्त थाय, एवीरीते कुलनी वृक्षस्त्रीओ तेणीने शीखामण श्रापती हवी. वली ते स्त्रीतेने कदेती के त्रिशला कृत्रियाणी. तं धीरे धीरे चाल. ६ धीरे धीरे बोल, क्रोधना क्रमने तजी दे, पथ्य वस्तुओनुं जोजन कर, नामी पोची बांध, ख-| हूँ मखम हस नहीं, आकाशमां (खुली जगामां) बेस नहीं, पथारीमां सुती रहे, अतिशय है। नीचे अथवा बहार जा नहीं; एवी रीते गर्नना सबवथी मंद थयेली त्रिशला क्षत्रियाणीने सखी कहती हवी. वली ते त्रिशला क्षत्रियाणी केवी हती ? ते कहे . ते गर्जने जे हित लागे CHALORESCAMCAECSCAROGREHO REOGROCEROACCAN O NING CY Jain Education initiational For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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