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________________ कल्प० ॥ ५३ ॥ एवं अने ते पण परिमाणवायुं, थोडं नहीं, तेम वधारे पण नहीं, पथ्य कहेतां आरोग्यताने करना, अने तेथीज गर्जने पुष्टि करे एवं अने ते पण उचित एवा स्थानके, पण आकाश श्रा - दिक जागमां नहीं, अने ते पण समये एटले जोजननो समय होते बते, आहार करती हवी. तथा विविक्त एटले दोषोए करीने रहित तथा मुटु एटले कोमल एवां जे शयन ने श्रासनो, तेथोए करीने, तथा प्रतिरिक्त एटले अन्य माणसोनी अपेक्षा माणसो विनानी, अने तेथी करीनेज सुखने करनारी, अने तेथी करीने मनने अनुकूल लागे एवी एटले मनने हर्ष उपजावे एवी, एवी रीतना जे विहारनी पृथ्वी, ते पर विहार करती हवी. हवे ते त्रिशला क्षत्रियाणी केवी रीते गर्जने धारण करती हवी ? ते कहे बे. उत्तम प्रका |रना गर्जना प्रजावथी उत्पन्न थयेला वे दोहद कहेतां मनोरथो जेणीने एवी, ते मनमां एम जाणती हवी के हुं अमारी पडो एटले सर्व जीवोनी हिंसा बंध करवानो पद वग मायुं दान दजं, गुरुओने सारी रीते पूजुं, तीर्थंकरोनी पूजा रचावुं, संघने विषे घणे प्रकारे वात्सल्यता करूं, सिंहासन पर बेसुं, उत्तम बत्र माथे धारण करावं, उत्तम सफेद चामरो मारी श्रासपास वींकावुं, सघलाओ पर थाज्ञा चलावुं तथा राजाश्रो चावीने मारा पादपीठने नमे, एवी डुं थाउं. वली हाथीना मस्तक पर बेसीने पताका जमते बते तथा वाजित्रोना नादोथी दिशाश्रोना जागो पूराते बते, तथा लोको जय जय शब्दोथी स्तुति करते बते, हर्षथी हुं उद्याननी पापरहित क्रीमा करूं. वली ते त्रिशला क्षत्रियाणी केवी ? तो के सिद्धार्थ राजाए सर्व मनोरथो संपूर्ण करवायी संपूर्ण थयेल वे दोहद जेणीनो एवी, तथा तेथी। करीने सन्मानयुक्त करेल वे दोहद जेपीए एवी; अने तेथी करीनेज नथी करेल कोइ पण दोहदनी अवगणना जेणीए एवी; वली ते केवी ? तो के संपूर्ण रीते वांबित थयेल वे दोहद जेणीनो एवी, तथा सर्व प्रकारे संपूर्ण थयेल बे दोहद जेणीनो एवी, एवी रीतनी थइ थकी, ते गर्जने धारण करती हवी. तथा सुखेथी एटले Jain Education International For Private & Personal Use Only सुबो० ॥ ५३ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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