SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * कल्प ******* ॥५५॥ मध्यम माणसो ज्यांसुधी माता घरनुं कामकाज करे , त्यांसुधी स्नेह राखे , तथा उत्तम मा सुबोग कणसो बेक जीवित पर्यंत माताने तीर्थ समान गणी तेना पर स्नेह राखे बे. मापनीतेत्रिशला क्षत्रियाणीए स्नान कर्यु, त्यारबाद पूजा करी तथा कौतुक मं-18 गल कर्यां, तथा सर्व प्रकारनां आजूषणोथी ते नूषित थक्ष पनी ते गर्नने ते त्रिशला क्षत्रियाणी नहीं अति मां, नहीं अति उष्ण, नहीं थति तिखां, नहीं अति कडवां, नहीं अति कषायेलां. नहीं अति खाटां, नहीं अति मधुरां, नहीं अति चीकणां, नहीं अति लुखां, नहीं अति आर्ड, त सकेला तेमज सर्व तुने विष सुखकारी एवं रीतना नोजन, याबादन, गंध तथा करीने पोषवा लागी. तेमां नोजन तो प्रसिक, श्राबादन एटले वस्त्र, गंध एटले पटवासादिक, माव्य एटले पुष्पमाला, तेए करीने गर्नने पोषवा लागी. अति शीतल एवा थाहारादिक गर्नने हितकारी होता नथी; केमके तेमांथी केटलाक वायु करनारा होय , केट-1| लाक पित्त करनारा होय जे अने केटलाक श्लेष्म करनारा होय बे, ते गर्नने अहितकारी होय । जे; कारण के वाग्जट्ट नामना वैद्यक ग्रंथमां पण कडं बे के वायुवाला पदार्थो खावाथी गर्न कबमो. शांधलो. जम तथा वामनरूप थाय बे, पित्तवाला पदार्थो जक्षण करवाथी खलति. पीलो. तथा चित्रीवालो थाय ने, तथा कफवाला पदार्थो नदण करवाथी पांमुरोगवालो थाय बे, अति खार जोजन नेत्रोने नाश करनारूं , अति ठंडं पवनने कोपाववावाj , अति उष्ण बलने हरे हैं। है, तथा अति काम सेववाथी जीवितने हरे . वली पण मैथुन, यान, वाहन, मार्गमां जवं, स्खलना पामवी, पमी जवं, पीमा थवी, अत्यंत दोग, श्रथमावु, विषम जगो पर सुवापणं, विषम जगो पर बेसबुं ते, उपवास करवा ते, वेग, विघात, अति दुखां, अति तीखां, तथा अति ॥५ कमवां नोजन, अति राग, थति शोक, अति खारी वस्तुउनुं सेवन, अतिसार, वमन, जुला वा तथा अजीर्ण यादिकथी गर्न तेना बंधनथी मुक्त थाय ने. माटे एवी रीते ************* ॥ Jain Education inarh For Private &Personal use Only Mainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy