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कल्प०
॥ २५ ॥
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बे. राता वस्त्रनी मछरदानीथी ते ढांकेली बे. छाति रमणीय बे. सुकोमल मृगचर्म, कपासनी रूवांटी, बूर जातनी वनस्पति, मांखण थने याकमाना रूना जेवो जेनो स्पर्श बे. सुगंधी, सुगन्धे करीने प्रधान एवां पुष्पथी ने वासचूर्ण थी जेमां उपचार करवामां श्राव्यो बे. यावी शय्यामां मध्य रात्रिना अवसरे | सुती जागती अल्प निद्रा करती त्रिशला क्षत्रियाणी गज, वृषन विगेरे चौद महास्वप्नोने जोइने जागी ग. ते त्रिशला क्षत्रियाणी प्रथम स्वप्नामां हाथी जोवे -यहीं 'प्रथम हस्ती जुवे' एम जे कह्युं ते घणी | जिनमाताई तेम जोवे बे, तेथी पाठानुक्रमनी अपेक्षाए कर्तुं ठे. अन्यथा श्रीकृषन देवनी माता प्रथम |रुषन ने वीरमाता प्रथम सिंहने जोवे. हवे ते केवो हाथी जोयो के जेने चार दांत बे. कोइ ठेकाणे तउ चउदंतं एवो पाठ वे तो एवो अर्थ थाय के, तेजश्री घणा बलवान् एवा चार दांतवालो. ते हाथी | केवो बे ? यति उंचो बे. वली वर्ष्या पठी दुग्धवर्ण थयेलो विशाल मेघ, मोतीनो हार, क्षीरसमुद्र, चं| नां किरणो, जलनां बिंडु ने रूपानो महान् पर्वत वैताढ्य तेना जेवो उज्ज्वल बे. गंधना लोजथी ज्यां जमरा आवे बे एवा विशिष्ट गंधवाला मदजलथी जेना गंगस्थल सुगंधी थयेला वे. इंद्रना हस्ती | ऐरावत जेवुं जेना देहनुं शास्त्रोक्त प्रमाण बे-एवा हाथीने त्रिशला माता जुवे बे. वली ते केवो हाथी बे तो के जलपूर्ण मेघनी गर्जना जेवो गंजीर ने मनोहर जेनो ध्वनि बे. वली ते शुभ एटले प्रशंसवा योग्य बे. जेनामां सर्व लक्षणोनो समूह बे, घने जेने प्रधान अने विशाल उरु बे एवा उत्तम | हस्तीने त्रिशला माताए प्रथम स्वप्नमां जोयो.
ते हस्तीना दर्शन थया पढी ते वृषनने जुवे बे. ते वृषण केवो बे तो के उज्ज्वल एवा कमलपत्रना समूहथी जेनी अधिक रूपकांति बे. जे पोतानी कांतिना समूह ने विस्तारी सर्व तरफ दशे दिशाने निश्चयपऐ शोनावे बे. वली जेनो स्कंध जाग शोजाना समूड़े करेली प्रेरणाथी होय तेम उल्लास पामती कांति वडे प्रकाशित, सुशोजित अने मनोहर बे. जो के स्कंधनो जाग उन्नत होवाथी स्वयमेव उल्लास पामे तथापि | शोजाना समूहनी प्रेरणाथी जाणे उल्लास पामता होय तेवी उत्प्रेक्षा करे बे. सूक्ष्म, शुद्ध अने सुकुमाल रोम
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सुवो०
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