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________________ कल्प० ॥७॥ CASARAMSALAM पण असमर्थ डे, एम प्रजुनी प्रशंसा करी. ते सांजली संगम नामनो सामानिक देव ईर्ष्या लावीने स है सुबोग समक्ष प्रतिज्ञा करवा लाग्यो के एक क्षणवारमा हुँ तेमने चलायमान करीश. एम कही तुरत प्रजु पासे | श्रावीने पहेलां तो तेणे धूलनी वृष्टि करी के जेथी प्रजुनां आंख, कान थादिक विवरो ढंका जवाश्री ते श्वास लेवाने अशक्त थया. ते वार पड़ी वज्र सरखा मुखवाली कीमीए करीने प्रजुना शरीरने तेणे चा-8 लणी सरखं कर्यु.ते कीमी एक बाजुथी प्रवेश करीने बीजी बाजुथी नीकलवा लागी. ते वार पड़ी वन टू। सरखा मुखवाला मांसो,ते वार पड़ी तीक्ष्णमुखवाली घीमेलो,ते वार पड़ी वीजी,ते वार पली नोलीयां,ते है। वार पठी सर्पो,ते वार पनी उंदरो-एसर्वेना नक्षण श्रादिकथी,ते वार पड़ी हाथी तथा हाथणीनी शुंढनाथाघातोथी तथा पगोए करीने कचरवाथी,ते वार पडी पिशाचना अट्टहास श्रादिकथी, ते वार पठी वाघना दाढ तथा नखना विदारण श्रादिकथी,ते वार पड़ी सिझार्थ अने त्रिशलाना करुणाजनक विलाप आदिकथी तेणे उपसर्ग कर्या. पठी स्कंधावार (लश्कर) विकुर्वीने के ज्या लोकोए प्रजुना चरणोनी मध्ये है अग्नि सलगावीने अने वासण मूकीने रसोश्करी हती.ते वार पड़ी चंमालोए प्रजुना कान अने जुजानां । मूल श्रादिने विषे तीक्ष्ण चांचोवाला पदीउनां पांजरां लटकाव्यां अने ते चांचथी नक्षण करवा ला-12 ग्यां.ते वार पनी प्रचंम पवनथी के जे पवन पर्वतोने पण कंपावतो थको प्रजुने उगली उबालीने नीचे पा-3 मतो हतो. ते वार पड़ी वंटोलीपाथी के जे प्रजुने चक्रनी पेठे जमावतो हतो.ते वार पड़ी हजार नारना है प्रमाणवाला चक्रथी के जेथी मेरु पर्वतर्नु शिखर पण चूर्ण थ जाय अने प्रनु पण जेथी बेक घुटण सुधी। जमीनमां खुंची गया हता. ते वार पडी प्रनात करीने तेणे कडं के हे देवार्य ! हजु सुधी केम उन्ना बगे? पण प्रजु तो ज्ञानथी रात्रि के एम जाणे ने. त्यार पड़ी देवनी शधिकरीने कडं के हे महर्षे ! तमारे स्वर्ग अथवा मोक्षजे कंश जोश्ए ते मागीलो; तेथी पण प्रजुने निश्चल जो तेणे देवांगनाना हावनावथी। प्रजुने उपसर्ग कर्या. एवी रीते तेणे एक रात्रिमा वीश उपसर्गो कर्या, पण तेथी प्रजु जरा पण चलायमान थया नहीं. अहीं कविए कह्यु के के हे प्रजु ! तमारंबल जगतनो नाश करवाने अने रक्षण कर GURUGRAAGRICROSORRECAMERICAUCRACANELONECESS A ULOCAL ॥ ॥ Jain Educati For Private &Personal use Only Bijainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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