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________________ कल्प सुबोग ॥ ४॥ MERCOCOGRAACARDCOMCUSANGRECRUAROSAGAR सरखा! हे वादीरूपी ज्वर प्रत्ये धन्वंतरि वैद्य सरखा! हे वादीरूपी टोलाना मस सरखा! हे वादीयो- नां हृदय प्रत्ये शख्य सरखा! हे वादीओना समूहने जीतनारा! हे वादीयोरूपी पतंगीयांश्रो प्रत्येदीपक सरखा!हे वादोश्रोना समूहना मुगट सरखा! हे पंमितोमां शिरोमणि सरखा ! हे जीतेल ने श्रनेक वादो जेणे एवा! हे सरखतीथी मलेल ने प्रसाद जेने एवा ! एवी रीते विरुदावलीथी गजावी दीधेल ने दिशाश्रोनो समूह जेणे एवा पांचसो शिष्योश्री वीटायेलो अनूति वीर प्रजु पासे जतो थको । विचारवा लाग्यो के अरे! या कुष्टे था शुं कर्यु के मने सर्वज्ञपणाना श्राटोपथी तेणे गुस्से कर्यो !!! केमके देमको काला सर्पनेलातो मारवा तैयार थयो ! अथवा तो लंदर पोताना दांतथी बिलामीना दांत पामवा तैयार थयो !अथवा बलद पोतानां शिगमां वडे इंजना हाथीने जल्दीथी मारवानी बाकरे * ने!अथवा हाथी पोताना दांतथी तुरत पर्वतने पामी नाखवानो यत्न करे !अथवा शशलो केसरी सिं-12 हना स्कन्ध उपरनी केशवालीने खेंचवाने श्छे ! के जे मारी दृष्टि धागल लोकमां ए पोतानुं सर्वज्ञपणुं है प्रसिक करे ले ? शेषनागना मस्तक उपर रहेला मणिने लेवा माटे तेणे पोतानो हाथ लांबो कर्यो ; हूँ केमके सर्वाना अनिमानथी तेणे मने कोपायमान कर्यो बे. पवननी सन्मुख थश्ने तेणे दावानल सलगाव्यो , अथवा पोताना शरीरनां सुख माटे तेणे कवचनी वेलमी साथे निश्चे आलिंगन कयु ; ४ एम हो, पण तेथी ! हमणांज हुँ तेने निरुत्तर करी दश्श, केमके ज्यांसुधी सूर्य उगतो नथी त्यांसु धीज पतंगीचं तथा चंड गाजे बे(पोताना जोरमां रहे ),पण सूर्य उग्या बाद तो तेओ हता नहता है यश जाय . वली हे हरिण, हाथी, घोमा विगेरेना समूहो! तमे जब्दीश्रा वन थकी पूर जाओ, केमके थाटोप सहित कोपथी स्फुरायमान थयेल ने केशवालीनी शोजाजेनी एवो केसरी सिंह अत्रे था-18 |वे बे. वलीमारा नाग्यना समूहथीज यावादीअहीं श्रावी पहोंच्यो ,माटे खरेखर थाजे तेनी जीननी खरज हुँ दूर करीश. वली लक्षणशास्त्रमांतो मारुं ददपणुं ,साहित्यशास्त्रमांमारी बुझिएकत्रथयेली बे, तर्कशास्त्रमा पण माझं अत्यंत कठिणपणुं(निपुणपणुं), माटे कया शास्त्रमा में श्रम कर्यो नथी? ॥ ४ ॥ Jain Education International For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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